प्रवृत्त्यालोकन्यासात् सूक्ष्मव्यवहितविप्रकृष्टज्ञानम् ।। 25 ।।

शब्दार्थ :- प्रवृति ( मन की प्रवृत्ति अर्थात मन की सत्त्व गुण प्रधान अवस्था ) आलोक ( प्रकाश का ) न्यासात् ( प्रभाव पड़ने या उसमें संयम करने से ) सूक्ष्म ( महीन अर्थात जो सामान्य रूप से न दिखाई दे ) व्यवहित ( जो किसी आवरण अर्थात पर्दे के अन्दर हो ) विप्रकृष्ट ( जो वस्तु कहीं दूर, दूसरे देश में बहुत नीचे अथवा बहुत ऊपर स्थित हो ) ज्ञानम् ( उन सभी का ज्ञान अथवा जानकारी हो जाती है )

 

 

सूत्रार्थ :- जब योगी द्वारा मन की प्रकाशमय प्रवृत्ति में संयम किया जाता है । तब उसे जो वस्तु या पदार्थ दिखाई नहीं देते, जो किसी आवरण या पर्दे के अन्दर हैं या किसी दूर देश में स्थित हैं । उन सभी वस्तुओं या पदार्थों का उसे भली- भाँति ज्ञान हो जाता है ।

 

 

व्याख्या :- इस सूत्र में मन की ज्योतिष्मयी अवस्था में संयम करने का परिणाम बताया गया है ।

 

इस सूत्र में वर्णित प्रवृत्ति शब्द को समझने के लिए हमें समाधिपाद के सूत्र संख्या छत्तीस (36) को समझना होगा । वहाँ पर मन की ज्योतिष्मयी अवस्था का उल्लेख किया गया है । जिसका अर्थ होता है सत्त्वगुण से युक्त मन की प्रकाश युक्त अवस्था । सत्त्वगुण प्रधान होने से यह प्रकाशमान होती है । जिससे साधक को दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है ।

 

मन की प्रवृत्ति में संयम करने से योगी को मुख्य रूप से तीन प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं ।

इनमें पहली सिद्धि है सूक्ष्म ( महीन ) या बहुत ज्यादा बारीक पदार्थों को भी देखने की क्षमता होना । यह सिद्धि होने के बाद योगी उन सभी वस्तुओं या पदार्थों को भी आसानी से देखने में सक्षम हो जाता है,  जिसे सामान्य रूप से नहीं देखा जा सकता ।

 

दूसरी सिद्धि होती है आवरण युक्त अर्थात किसी पदार्थ से ढके हुए पदार्थों या  वस्तुओं को भी देखने की क्षमता हो जाना । इसके माध्यम से योगी उन सभी वस्तुओं को भी आसानी से देख लेता है जिन पर किसी प्रकार का आवरण अर्थात कुछ पर्दा डाल रखा हो । योगी को इसके माध्यम से आवरण के अन्दर की वस्तुओं का भली- भाँति ज्ञान हो जाता है ।

 

तीसरी सिद्धि है दूर स्थित वस्तुओं को भी आसानी से देखने की क्षमता होना । इस सिद्धि से योगी अपने से दूर स्थित वस्तुओं को भी बिना किसी साधन के आसानी से देख लेता है । जैसे एक जगह बैठकर दूसरी जगह की वस्तुओं को देखना ।

 

इस प्रकार मन की प्रवृत्ति में संयम करने से योगी को सूक्ष्म, ढकी हुई व दूर की वस्तुओं या पदार्थों को देखने की दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जाती है।

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  1. ॐ गुरुदेव*
    मन की ज्योतिषमयीअवस्था में संयम का अति
    सुन्दर व्याख्या की है आपने।
    इसके लिए आपको साधुवाद प्रेषित करता हूं।

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