मैत्र्यादिषु बलानि ।। 23 ।।
शब्दार्थ :- मैत्री ( मित्रता ) आदिषु ( आदि भावनाओं में संयम करने से ) बलानि ( बल की प्राप्ति होती है )
सूत्रार्थ :- मित्रता आदि चित्त प्रसादन के उपायों में संयम करने से योगी को मित्रता आदि विषयों में बल की प्राप्ति होती है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में मित्रता आदि भावनाओं में संयम करने का फल बताया गया है ।
महर्षि पतंजलि योगसूत्र ने समाधिपाद के सूत्र संख्या- 33 में चित्त प्रसादन के उपायों का वर्णन किया है । वहाँ पर चित्त प्रसादन के चार उपायों की बात कही गई है जो मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा नाम से हैं ।
योगसूत्र के भाष्यकारों ने इन सभी भावनाओं में से इस सूत्र में उपेक्षा को हटा दिया है । क्योंकि उपेक्षा को त्यागने योग्य माना गया है । इसलिए उसमें सयंम न करने की बात कही गई है । केवल मैत्री, करुणा और मुदिता को ही संयम करने के लिए उपयुक्त माना गया है ।
मैत्री का अर्थ होता है मित्रता अर्थात दोस्ती करना या साथी बनाना । मित्रता की भावना हमें अच्छे व सम्पन्न व्यक्तियों के साथ करनी चाहिए । इस प्रकार योगी द्वारा मित्रता में संयम करने से उसे मैत्री बल की प्राप्ति होती है । जिसके कारण अच्छे से अच्छे व्यक्तियों के साथ उसकी मित्रता होती है ।
करुणा का अर्थ है बिना सोच- विचार किए किसी असहाय व्यक्ति को सहायता प्रदान करना । यह दया का अत्यंत उन्नत स्वरूप है । जिसमें हम किसी भी असहाय, दुःखी व मुसीबत में पड़े व्यक्ति की सहायता के लिए अग्रसर ( हमेशा तैयार ) रहते हैं । जब योगी करूणा में संयम कर लेता है तो उसे करूणा बल की प्राप्ति होती है । जिससे वह अधिक से अधिक दुःखी व असहायों की निःस्वार्थ भाव से सहायता करता है ।
तीसरी भावना है मुदिता अर्थात प्रसन्नता । विद्वान, गुरु, आचार्य व अपने माता- पिता को देखकर उनके प्रति प्रसन्नता की या सुख की भावना रखना ।
जब योगी मुदिता में संयम करता है तो उसे मुदिता नामक बल की प्राप्ति होती है । और वह अपने सभी आदरणीयों का सम्मान करते हुए सुख का अनुभव करता है ।
इस प्रकार ऊपर वर्णित चित्त प्रसादन की तीनों भावनाओं मैत्री, करूणा और मुदिता में संयम करने से योगी को क्रमशः मैत्री, करूणा और मुदिता नामक बलों की प्राप्ति होती है ।
Pranaam Sir! ?? very well explained sir. Thank you
Guru ji nice explanation about concentration of friendship benefit.
Thanku so much sir??
Thanks again sir
?Prnam Aacharya ji! DHNYAVAD OM?
?Prnam Aacharya ji! This Sutra is very moralising. DHNYAVAD FOR GIVING SUCH A NICE EXPLANATION. OM?