सोपक्रमं निरुपक्रमं च कर्म तत्संयमादपरान्तज्ञानमरिष्टेभ्यो वा ।। 22 ।।
शब्दार्थ :- सोपक्रमम् ( शीघ्र ही परिणाम या फल देने वाले कार्य ) च ( और ) निरूपक्रमम् ( देरी से परिणाम या फल देने वाले कार्य ) कर्म ( दो प्रकार के कार्य होते हैं ) तत् ( उन कर्मों में ) संयमात् ( संयम करने से ) वा ( और ) अरिष्टेभ्य: ( मृत्यु का ज्ञान कराने वाले चिन्हों अर्थात बुरी निशानियों से भी योगी को ) अपरान्त ( मृत्यु का ) ज्ञानम् ( ज्ञान अथवा उसकी जानकारी होती है )
सूत्रार्थ :- शीघ्रता व देरी से फल देने वाले कार्यों में सयंम करने से और मृत्यु का ज्ञान कराने वाली बुरी निशानियों के द्वारा योगी को मृत्यु का ज्ञान हो जाता है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में बताया है कि योगी द्वारा दो प्रकार के कर्मों में संयम करने से उसे मृत्यु का भी ज्ञान हो जाता है ।
यहाँ पर मुख्य रूप से दो प्रकार के कर्मों की बात कही गई है । एक वह कर्म होते हैं जिनको करने से हमें उनका फल या परिणाम अति शीघ्र अर्थात जल्द ही प्राप्त हो जाता है । उन सभी कर्मों को सोपक्रम कहा जाता है । जैसे – आटा गूंथ कर उसकी रोटी बनाई और उसे खा लिया या चावल को पकाया और खा लिया । यह सोपक्रम होता है । जिसमें कार्य को करते ही हमें उसका फल मिल जाता है ।
और दूसरे कर्म वह होते हैं जिनको करने से हमें उनका परिणाम या फल बहुत विलम्ब अर्थात देरी से प्राप्त होता है । उन सभी कर्मों को निरूपक्रम कहा जाता है । जैसे – खेत में गेहूँ या चावल की बिजाई करने के लगभग चार महीनों बाद उसकी कटाई होती है । उसके बाद हमें अन्न की प्राप्ति होती है । यह निरूपक्रम कहलाता है । जिसमें कार्य को करने के बाद काफी समय बाद हमें उसका फल मिलता है ।
जब योगी ऊपर वर्णित इन दोनों ही कर्मों में संयम कर लेता है और मृत्यु से पूर्व होने वाली अशुभ घटनाओं या लक्षणों को अच्छे से देखने पर भी मृत्यु का ज्ञान अर्थात मृत्यु की जानकारी हो जाती है ।
अरिष्ट का अर्थ होता है वह बुरे लक्षण या घटनाएं जो मृत्यु के नजदीक आने पर घटित होती हैं । जिससे योगी मृत्यु का पहले से ही अनुमान लगा लेता है ।
Difficult sutra in simple way explanation guru ji.
??Prnam Aacharya ji! Thank you for this awakening Explanation of the true Sutra!. om ram!?
Thanku sir??