कायरूपसंयमात्  तद्ग्राह्यशक्तिस्तम्भे चक्षु:प्रकाशासम्प्रयोगेऽन्तर्द्धानम् ।।  21 ।।

शब्दार्थ :- काय ( काया अर्थात शरीर ) रूप ( शरीर की आकृति ) संयमात् ( में संयम करने से ) तद् ( जब ) ग्राह्यशक्ति ( जिस ताकत या शक्ति के माध्यम से देखा जाए ) स्तम्भे ( वह रुक अथवा बाधित हो जाती है ) चक्षु: ( तब आँखों का ) प्रकाश ( रोशनी या उजाले के साथ ) असम्प्रयोगे ( सम्बन्ध न होने के कारण ) अन्तर्धान ( योगी अन्तर्धान अर्थात दिखाई देना बंद हो जाता है )

 

सूत्रार्थ :- जब योगी स्वयं अपने शरीर के रूप में संयम कर लेता है तो उससे दूसरे व्यक्तियों की आँखों का रोशनी के साथ सम्बन्ध टूट जाता है । जिससे उनकी योगी के शरीर को देखने की शक्ति रुक जाती है । इस कारण योगी का शरीर एक प्रकार से अदृश्य अर्थात दिखाई नहीं देता है ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में शरीर के रूप में संयम करने से मिलने वाले फल को बताया गया है ।

 

सूत्रकार कहते हैं कि जब योगी स्वयं अपने ही शरीर के रूप अर्थात आकृति में संयम कर लेता है तो इससे दूसरे व्यक्तियों की आँखों का प्रकाश या रोशनी के साथ सम्पर्क टूट जाता है । जिससे उनकी आँखों की देखने की शक्ति रुक जाती है । इससे योगी का शरीर अदृश्य हो जाता है अर्थात उसका शरीर दिखाई नहीं देता है ।

 

इस सूत्र में अदृश्य होने की बात कही गई है जिसे मानना थोड़ा कठिन है । परंतु यहाँ पर महर्षि पतंजलि ने इस बात को कहा है तो अवश्य ही इसका कोई प्रमाण होगा । यह निश्चित तौर से एक चिन्तनीय विषय है ।

 

यदि हम हमारी आँखों के देखने की शक्ति की बात करें तो हमारे पास इसका एक ठोस व निश्चित प्रमाण है । और वह प्रमाण यह है कि हमारी आँखें तभी किसी वस्तु या दृश्य को देखने में सक्षम होती हैं जब किसी वस्तु पर प्रकाश पड़ता है । किसी भी वस्तु या पदार्थ के ऊपर प्रकाश या रोशनी पड़ने से ही उस वस्तु या पदार्थ का छाया चित्र हमारी आँखों की पुतलियों पर आता है । जिसे हम मस्तिष्क के द्वारा पहचान पाते हैं । अब हम सूत्र की बात करते हैं । सूत्र में सूत्रकार कहते हैं कि शरीर के रूप अर्थात आकृति में संयम करने से आँखों का प्रकाश अर्थात रोशनी के साथ सम्पर्क टूट जाता है जिससे हमारी आँखें देख नहीं पाती है । अब यह प्रमाण तो बिलकुल सटीक बैठता है कि जब हमारी आँखों का रोशनी या प्रकाश के साथ सम्बन्ध खत्म हो जाता है तो हमारी आँखें किसी भी वस्तु या पदार्थ को देख नहीं सकती ।

 

उदाहरण स्वरूप रात के घने अन्धेरे में हमारी आँखें सामने रखी हुई वस्तुओं को भी नहीं देख पाती । क्योंकि आँखों का और रोशनी का आपस में सम्पर्क नहीं है । अतः यह सूत्र भी इसी प्रमाण पर आधारित है । यह योगी के योगबल का ही परिणाम है कि जिससे दूसरे की आँखों का प्रकाश से सम्बंध टूट जाता है ।

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