न च तत्सालम्बनं तस्याविषयीभूतत्वात् ।। 20 ।।

 

शब्दार्थ :- च ( लेकिन ) तत् ( वह अर्थात वह ज्ञान ) सालम्बनम् ( आलम्बन के साथ ) न ( नही होता ) तस्याविषयीभूतत्वात् ( क्योंकि वह योगी के संयम का विषय नहीं है )

 

सूत्रार्थ :- लेकिन योगी को वह ज्ञान आलम्बन ( आश्रय ) रहित होता है । क्योंकि दूसरे के चित्त का ज्ञान उसके विषयों के साथ नहीं होता ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में बताया गया है कि योगी को दूसरे चित्त का ज्ञान होता है लेकिन चित्त के विषयों का ज्ञान नहीं होता ।

 

योगी द्वारा किसी के भी चित्त में संयम करने से वह केवल उस व्यक्ति के चित्त की वृत्तियों को ही जान पाता है । जैसे कि इस व्यक्ति का चित्त राग- द्वेष आदि  से रहित है या इनसे युक्त है । लेकिन योगी को इस बात का पता नहीं चलता कि उस व्यक्ति का किस वस्तु या व्यक्ति के साथ राग अथवा प्रेम है और वह किस वस्तु या व्यक्ति से द्वेष अथवा वैर- भावना रखता है ।

 

योगी को केवल चित्त की वृत्तियों का ही ज्ञान रहता है उनसे संबंधित विषयों की उसे जानकारी नहीं होती है । क्योंकि वह चित्त के विषय या पदार्थ योगी के संयम का विषय नहीं होते हैं । अर्थात योगी द्वारा दूसरे के चित्त के विषयों का ज्ञान नहीं होता ।

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  1. ??प्रणाम आचार्य जी! सुन्दर सूत्र की आपने बहुत अच्छी व्याख्या की है ।आपका बहुत बहुत धन्यवाद! ओम ??

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