प्रत्ययस्य परचित्तज्ञानम् ।। 19 ।।
शब्दार्थ :- प्रत्ययस्य ( दूसरे के ज्ञान में संयम करने पर ) पर ( दूसरे के ) चित्त ( चित्त का ) ज्ञानम् ( ज्ञान हो जाता है )
सूत्रार्थ :- दूसरे के ज्ञान में संयम करने पर योगी को दूसरे के चित्त का भी ज्ञान प्राप्त हो जाता है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में किसी दूसरे के ज्ञान में संयम करने के फल को बताया है ।
सूत्रकार कहते हैं कि जब योगी किसी दूसरे व्यक्ति के ज्ञान में संयम कर लेता है तो उसे उस व्यक्ति के चित्त का ज्ञान भली-भाँति ( अच्छी प्रकार से ) हो जाता है ।
इस प्रकार जब योगी को दूसरे के चित्त का अच्छी तरह से ज्ञान हो जाता है, तो वह उसके विषय में सब जान लेता है । जैसे कि उसके चित्त में राग- द्वेष आदि क्लेश हैं या मित्रता, करूणा आदि चित्त प्रसादन के उपाय हैं । इसके अतिरिक्त भी योगी को उसके चित्त से सम्बंधित अन्य सभी बातों का भी ज्ञान हो जाता है ।
इसको हम एक दूसरे तरीके से भी समझ सकते हैं । जैसे कई बड़े -व्यक्ति किसी अनजान व्यक्ति को उसके हाव- भाव से ही पहचान लेते हैं कि यह व्यक्ति किस प्रवृत्ति का है, व उसके मन में क्या चल रहा है ? इस प्रकार जब कोई अनुभवी व्यक्ति किसी का आंकलन करता है तो वह लगभग सही होता है ।
ठीक इसी प्रकार जब कोई योगी अपने विवेकज्ञान से किसी दूसरे के ज्ञान में संयम कर लेता है तो वह उसके चित्त के सभी संस्कारों को भली- भाँति जान लेता है ।
??PRNAM AACHARYA JI! BEAUTIFUL Sutra!Dhnyavad! ???
Pranaam Sir! Thank you for giving such clear view of the sutra.
Well explained guru ji other person knowledge sayama benefits.
Thank you so much Chacha ji for the guidance and such clear view of knowledge easy to understand
Thanks a lott
Thanks for knowledge ??
ॐ गुरुदेव*
ज्ञान में संयम के फल का
अति सुन्दर अनुवाद ।
धन्यवाद।
Thanku sir??
Thank you sir