एतेन  भूतेन्द्रियेषु धर्मलक्षणावस्थापरिणामा व्याख्याता: ।। 13 ।।

 

शब्दार्थ :- एतेन ( इनसे ) भूत ( भूतों अर्थात आकाश, वायु आदि पंच महाभूत ) इन्द्रियेषु ( इन्द्रियों अर्थात आँख, नाक आदि में ) धर्मलक्षणावस्थापरिणामा ( धर्म परिणाम, लक्षण परिणाम, व अवस्था परिणाम ) व्याख्याता ( कहे हुए मानने चाहिए )

 

सूत्रार्थ :- जिस प्रकार पहले के सूत्रों में चित्त के जो निरोध, समाधि व एकाग्रता परिणाम कहे गए हैं । उसी प्रकार सभी पंच भूतों व इन्द्रियों में होने वाले धर्म परिणाम, लक्षण परिणाम व अवस्था परिणाम भी कहे जा चुकें है ।

  

व्याख्या :- इस सूत्र में भूतों व इन्द्रियों में होने वाले धर्म, लक्षण व अवस्था परिणामों की चर्चा की गई है ।

जैसा इस सूत्र से पहले के सूत्रों में चित्त के निरोध, समाधि व एकाग्रता परिणाम कहे गए हैं, ठीक उसी प्रकार पंच भूतों व इन्द्रियों में भी धर्म, लक्षण व अवस्था परिणामों को मानना चाहिए ।

 

महाभूतों का धर्म परिणाम :- धर्म का अर्थ यहाँ पर गुण से लिया गया है । अर्थात जहाँ – जहाँ पर भी धर्म शब्द का प्रयोग किया जाए वहीं- वहीं पर उसको गुण समझना चाहिए ।

सभी पंच महाभूतों ( पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश ) के अलग- अलग धर्म ( गुण ) होते हैं । जैसे पृथ्वी अर्थात मिट्टी का गुण है निर्माण करना । अब मिट्टी से चाहे आप घर का निर्माण करो या घड़े का यह सब तो हमारे ऊपर निर्भर है । मिट्टी मूल रूप में होती है । वह अपने अन्दर बहुत सारी शक्ति अदृश्य रूप में लिए हुए है । जैसे मिट्टी से ईंट, मकान, खिलौने, घड़े आदि बनाए जा सकते हैं । लेकिन वह सभी मिट्टी में अदृश्य रूप में विद्यमान हैं । जब मिट्टी अपने स्वरूप को बदलकर घड़े, ईंट या मकान में बदल जाती है, तब वह उसका धर्म परिणाम कहलाता है ।

 

जिस प्रकार मिट्टी का धर्म परिणाम होता है ठीक उसी प्रकार अन्य पंच महाभूतों जल, अग्नि, वायु व आकाश के भी धर्म परिणाम होते हैं ।

 

महाभूतों का लक्षण परिणाम :- लक्षण का अर्थ है वस्तु का गुण उसके काल अर्थात समय के अनुसार बदलता रहता है । उसे उसका लक्षण परिणाम कहते हैं । इसमें तीनों कालों के अनुसार उसके गुण होते हैं । यह तीन काल हैं- वर्तमान, भविष्य व भूतकाल ।

जैसे- मिट्टी का वर्तमान लक्षण है यही है कि वह ठोस रूप में विद्यमान है । यह उसका वर्तमान लक्षण परिणाम कहलाता है । उस मिट्टी से ईंट, मकान व घड़े का निर्माण हो सकता है । यह उसका भविष्य लक्षण परिणाम कहलाता है । अर्थात इस मिट्टी से क्या- क्या सम्भावनाएँ हो सकती हैं । और जब मिट्टी से बनी ईंट, मकान व घड़ा आदि एक निश्चित समय के बाद टूट या खत्म हो जाते हैं तो वह मिट्टी का भूतकाल लक्षण परिणाम कहलाता है । अर्थात मिट्टी का अपने मूल रूप में वापिस आ जाना ही उसका भूतकाल लक्षण परिणाम है । इसी प्रकार अन्य जल आदि महाभूतों के भी अलग- अलग लक्षण परिणाम होते हैं । जैसे- जल द्रव्य रूप में होता है यह उसका मूल गुण होता है । जिसे वर्तमान गुण भी कहा जाता है । लेकिन उस द्रव्य रूपी जल को यदि अत्यधिक तापमान में रख दिया जाए तो वह भाप ( वाष्प ) बनकर उड़ जाएगा । और यदि उसे अत्यधिक कम तापमान में रख दिया जाए तो वह बर्फ के रूप में जम जाएगा । इस प्रकार जल के भी अलग- अलग लक्षण होते हैं । इसी प्रकार अन्य भूतों के भी होते हैं ।

 

महाभूतों का अवस्था परिणाम :- अवस्था का अर्थ है स्थिति । किसी भी वस्तु की स्थिति को ही उसकी अवस्था कहते हैं । एक वस्तु के काल के अनुसार मुख्य रूप से तीन लक्षण होते हैं-  वर्तमान, भविष्य व भूतकाल । वस्तु का वर्तमान से भविष्य में जाने व भविष्य का भूतकाल में जाने का जो क्रम है उसे ही अवस्था परिणाम कहते हैं । कोई भी वस्तु या पदार्थ वर्तमान से भविष्य में एकदम से नहीं पहुँचती है । जैसे- मिट्टी को ईंट, मकान या घड़ा बनने में एक निश्चित समय लगता है । इसी प्रकार उनको टूटने या खत्म होने में भी एक निश्चित समय लगता है । जैसे – पानी को भाप व बर्फ बनने में समय लगता है । और फिर उस भाप व बर्फ को वापिस द्रव्य बनने में भी समय लगता है । इस प्रकार जब वह वस्तु या पदार्थ अलग- अलग स्थितियों से होकर गुजरता है तो वह उस वस्तु या पदार्थ का अवस्था परिणाम कहलाता है । जैसे- मनुष्य पहले बाल अवस्था में होता है फिर वह युवा अवस्था में आता है । और उसके बाद धीरे- धीरे वह प्रौढ़ अवस्था में आ जाता है । इसी बदलते क्रम को ही अवस्था परिणाम कहा जाता है ।

 

अब हम इन्द्रियों में होने वाले धर्म, लक्षण व अवस्था परिणामों को समझने का प्रयास करेंगें ।

 

जिस प्रकार पृथ्वी व जल आदि महाभूतों के धर्म, लक्षण व अवस्था परिणाम होते हैं वैसे ही सभी इन्द्रियों के भी होते हैं ।

 

इन्द्रियों का धर्म परिणाम :- आँखों का धर्म अर्थात गुण है देखना । खुली आँखों से वस्तुओं को देखा जाता है । यह आँखों का दृश्य स्वरूप है । बन्द आँखों से वस्तुओं को देखा नहीं जा सकता है । यह आँखों का अदृश्य स्वरूप है । इसको ही आँखों का धर्म परिणाम कहते हैं ।

इसी प्रकार अन्य इन्द्रियों ( कान, नाक, जिह्वा व त्वचा ) के भी अलग- अलग  धर्म परिणाम होते हैं ।

 

 

इन्द्रियों का लक्षण परिणाम :- जब हमारी आँखें खुली होती है, तो वह उनका वर्तमान लक्षण परिणाम कहलाता है । जब आँखें बन्द है तो वह उनका भूतकाल लक्षण परिणाम होता है । और खुलने से पहले उनका भविष्य लक्षण परिणाम कहलाता है ।

 

इन्द्रियों का अवस्था परिणाम :-

जब आँखों का खुलने और बन्द होने का एक क्रम चलता रहता है तो वह उसका अवस्था परिणाम होता है । अर्थात एक अवस्था से दूसरी अवस्था में जाना ही उस वस्तु का अवस्था परिणाम होता है ।

 

ठीक इसी प्रकार अन्य इन्द्रियों के भी धर्म, लक्षण व अवस्था परिणाम मानने चाहिएं ।

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  1. ??प्रणाम आचार्य जी! सूत्र की व्याख्या बहुत ही सुंदर की गई है ।आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।ओम ??

  2. ॐ गुरुदेव *
    बहुत ही सुंदर व्याख्या की है आपने
    अस्तु आपको बहुत-बहुत आभार ।

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