देशबन्धश्चितस्य धारणा ।। 1 ।।
शब्दार्थ :- चित्तस्य ( चित्त को ) देश ( किसी एक स्थान पर ) बन्ध: ( बाँधना अर्थात ठहराना या केन्द्रित करना ) धारणा ( धारणा होती है । )
सूत्रार्थ :- अपने चित्त को किसी भी एक स्थान पर बाँधना, लगाना, ठहराना, या केन्द्रित करना धारणा कहलाती है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में अष्टांग योग के छठे (6) अंग अर्थात धारणा का वर्णन किया गया है । धारणा अष्टांग योग का पहला आन्तरिक अंग है ।
जैसे ही योगी को प्रत्याहार में सफलता मिलती है वैसे ही उसका अपने मन पर पूर्ण नियंत्रण हो जाता है । जिससे वह जहाँ चाहे वहीं पर अपने मन को स्थिर कर सकता है ।
इस प्रकार अपने मन को किसी भी एक स्थान पर बाँधना, स्थिर करना, लगाना, ठहराना या उसे केन्द्रित करना ही धारणा कहलाती है । यह ध्यान से पूर्व की व प्रत्याहार के बाद अवस्था होती है ।
धारणा के मुख्य दो प्रकार कहे गए हैं । एक आन्तरिक धारणा और दूसरी बाह्य धारणा । आन्तरिक धारणा में साधक अपने चित्त को अपने नाभि, हृदय, मस्तिष्क के बीच में अर्थात भृकुटि पर, नासिका के अगले हिस्से पर व जिह्वा के अगले भाग पर स्थिर करने का प्रयास करता है ।
दूसरा बाह्य धारणा होती है । जिसमें हम अपने चित्त को बाह्य पदार्थों पर लगाने या स्थिर करने का प्रयास करते हैं । जैसे- सूर्य, चन्द्रमा, आकाश, पहाड़, वृक्ष, कोई प्रतीक आदि पर अपने चित्त को केन्द्रित करना ही बाह्य धारणा कहलाती है ।
बहुत सारे व्यक्ति कहते हैं कि हम शारीरिक रूप से उपयुक्त है । हम तो सीधा धारणा या ध्यान का ही अभ्यास करेंगें । ऐसे व्यक्ति कभी भी धारणा या ध्यान में सफलता प्राप्त नहीं कर पाते हैं । क्योंकि जब तक आप यम, नियम, आसन, प्राणायाम व प्रत्याहार की साधना नहीं करोगे तब तक आप धारणा व ध्यान में सफल नहीं हो सकते । धारणा, ध्यान व समाधि यह तीनों अष्टांग योग के आन्तरिक अंग है । जो कि यम, नियम, आसन, प्राणायाम व प्रत्याहार नामक ( बहिरंग ) अंगों पर निर्भर रहते हैं । इसलिए पहले किसी भी योगी साधक को पहले पाँच अंगों का पालन करना चाहिए । उसके बाद इन तीन आन्तरिक अंगों का । तभी हमें साधना में सिद्धि प्राप्त होती है ।
?प्रणाम आचार्य जी! विभूतिपाद के सुत्रो को प्रारम्भ करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ! यहाँ इसके पहले सूत्र मे धारणा की स्पष्ट व्याख्या के लिए आपका पुनः धन्यवाद आचार्य जी! ???
Thanku so much sir ??
ॐ गुरुदेव*
योगसूत्र के इस तृतीय सोपान विभूतिपाद
में योग के प्रथम अंतरंग धारणा की अति सुन्दर
व्याख्या प्रस्तुत की है।इसके लिए आपको हृदय से
परम आभार।
Pranaam Sir! ??thank you for starting with the Vibhuti pada sutras
बधाई हो आप अपने मार्ग में बढते जाए। व राष्ट्र को स्वयं भू बाबा रामदेव जैसे योगगुरूओ से बचाएं
Balance explanation about Dharna method perfectly done guru ji.
बहुत ही सुंदर व्याख्या है सर, धान्यवाद।