खेचरी मुद्रा वर्णन कपालकुहरे जिह्वा प्रविष्टा विपरीतगा । भ्रुवोरन्तर्गता दृष्टिर्मुद्रा भवति खेचरी ।। 32 ।। भावार्थ :- अपनी जिह्वा को उल्टी करके गले में स्थित तालु प्रदेश के छिद्र में प्रविष्ट ( डाल ) कराकर दृष्टि को भ्रूमध्य ( दोनों भौहों ) के बीच में स्थिर करना खेचरी मुद्रा होती है । …
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- Category: hatha pradipika 3








