विपरीतकरणी वर्णन
यत्किञ्चित् स्त्रवते चन्द्रादमृतं दिव्यरूपिण: ।
तत् सर्वं ग्रसते सूर्यस्तेन पिण्डो जरायुत: ।। 77 ।।
भावार्थ :- चन्द्र मण्डल से जिस दिव्य अमृत रस का स्त्राव ( टपकता ) होता है । उसका निरन्तर स्त्राव होने से उस अमृत रस को सूर्य मण्डल भस्म कर देता है । जिसके कारण मनुष्य में बुढ़ापा आता है ।
तत्रास्ति करणं दिव्यं सूर्यस्य मुखवञ्चनम् ।
गुरुपदेशतो ज्ञेयं न तु शास्त्रार्थकोटिभि: ।। 78 ।।
भावार्थ :- उस दिव्य अमृत रस को सूर्य से बचाने के लिए एकमात्र उपाय गुरु द्वारा बताया गया मार्ग ही है अर्थात् गुरु द्वारा बताए गए उपदेश से ही उसे जाना जा सकता है इसके अलावा उसे करोड़ो शास्त्रों द्वारा भी नहीं जाना जा सकता ।
ऊर्ध्वनाभिरधस्तालुरूर्ध्वं भानुरध: शशी ।
करणी विपरीताख्या गुरुवाक्येन लभ्यते ।। 79 ।।
भावार्थ :- नाभि प्रदेश से ऊपर सूर्य मण्डल और तालु प्रदेश के नीचे चन्द्र मण्डल स्थित होते हैं । विपरीत करणी मुद्रा में सूर्य नीचे व चन्द्र ऊपर की ओर हो जाते हैं । इस विपरीत करणी नामक मुद्रा को गुरु के निर्देशन में ही सीखना चाहिए ।
नित्यमभ्यासयुक्तस्य जठराग्निविवर्धिनी ।
आहारो बहुलस्तस्य सम्पाद्य: साधकस्य च ।
अल्पाहारो यदि भवेदग्निर्दहति तत्क्षणात् ।। 80 ।।
भावार्थ :- जो साधक नियमित रूप से विपरीतकरणी मुद्रा का अभ्यास करते हैं उनकी जठराग्नि बहुत तीव्र हो जाती है । इसलिए उस साधक को साधनाकाल में भोजन अच्छी मात्रा में करना चाहिए । उसे कभी भी भूखे पेट नहीं रहना चाहिए । यदि वह पर्याप्त मात्रा में उचित गुणवत्ता वाला भोजन नहीं करता है तो जठराग्नि की बढ़ी हुई अग्नि साधक के शरीर को जलाने लगती है । अतः विपरीत करणी के अभ्यासी साधको को भोजन उचित मात्रा में करना चाहिए ।
अध: शिरश्चोर्ध्वपाद: क्षणं स्यात् प्रथमे दिने ।
क्षणाच्च किञ्चिदधिकमभ्यसेच्च दिने दिने ।। 81 ।।
भावार्थ :- आरम्भ में साधक को इस विपरीत करणी मुद्रा का अभ्यास क्षण भर के लिए करना चाहिए । इसके बाद दिन- प्रतिदिन इसके अभ्यास को धीरे- धीरे बढ़ाना चाहिए ।
विपरीत करणी मुद्रा का लाभ
वलितं पलितं चैव षण्मासोर्ध्वं न दृश्यते ।
याममात्रं तु यो नित्यमभ्यसेत् स तु कालजित् ।। 82 ।।
भावार्थ :- लगातार छ: महीने तक विपरीत करणी मुद्रा का अभ्यास करने से साधक के शरीर में सिकुड़न अर्थात् झुर्रियां नहीं पड़ती व बाल भी सफेद नहीं होते । जो साधक प्रतिदिन ढाई घण्टे ( 2:30 ) तक इसका अभ्यास करता है वह मृत्यु को भी जीत लेता है ।
अति सुंदर ।।
Thanks sir ji.gud morning
Thank you sir
Very nice information, thank you sir