उड्डीयान बन्ध
बद्धो येन सुषुम्नायां प्राण स्तूड्डीयते यत: ।
तस्मादुड्डीयनाख्योऽयं योगिभि: समुदाहृत: ।। 55 ।।
भावार्थ :- रुके हुए प्राण को ऊपर की ओर सुषुम्ना नाड़ी में ले जाने के कारण ही योगियों ने इस विधि को उड्डीयान बन्ध कहा है ।
उड्डीनं कुरुते यस्मादविश्रान्तं महाखग: ।
उड्डीयानं तदेव स्यात्तत्र बन्धोऽभिधीयते ।। 56 ।।
भावार्थ :- जिस विधि से प्राण का प्रवाह आकाश अर्थात् निरन्तर ऊपर की ओर प्रवाहित होता रहता है । उसी योग क्रिया को उड्डीयान बन्ध कहते हैं । प्राण को उर्ध्वगामी बनाने के लिए ही उड्डीयान बन्ध का अभ्यास किया जाता है ।
उड्डीयान बन्ध विधि
उदरे पश्चिमं तानं नाभेरूर्ध्वं च कारयेत् ।
उड्डीयानो ह्यसौ बन्धौ मृत्युमातङ्गकेसरी ।। 57 ।।
भावार्थ :- पेट के नाभि से ऊपर वाले हिस्से को अपनी रीढ़ की तरफ खींचना ही उड्डीयान बन्ध कहलाता है । यह मृत्यु रूपी हाथी के आगे सिंह अर्थात् शेर के समान है । इसके अभ्यास से साधक मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेता है ।
विशेष :- श्वास को बाहर निकाल कर पेट को खाली कर लें । इसके बाद पेट को सामर्थ्य के अनुसार कमर की ओर खीचना चाहिए । यह विधि उड्डीयान बन्ध कहलाती है ।
उड्डीयान बन्ध लाभ
उड्डीयानं तु सहजं गुरुणा कथितं यथा ।
अभ्यसेत् सततं यस्तु वृद्धोऽपि तरुणायते ।। 58 ।।
भावार्थ :- गुरु द्वारा बताई गई इस सहज विधि ( उड्डीयान बन्ध ) का विधिपूर्वक अभ्यास करने से बुढ़ा व्यक्ति भी पुनः युवा ( जवान ) हो जाता है ।
नाभेरूर्ध्वमधश्चापि तानं कुर्यात् प्रयत्नत: ।
षण्माससमभ्यसेन्मृत्युं जयत्येव न संशय: ।। 59 ।।
भावार्थ :- नियमित रूप से पूरे प्रयास के साथ नाभि के ऊपर व नीचे के भाग को पीठ की ओर खींचने से ( उड्डीयान बन्ध ) योगी साधक छः महीने में ही मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेता है । इसमें किसी प्रकार का कोई सन्देह नहीं है ।
सर्वेषामेव बन्धानामुत्तमो ह्युड्डियानक: ।
उड्डीयाने दृढे बद्धे मुक्ति: स्वाभाविकी भवेत् ।। 60 ।।
भावार्थ :- यह उड्डीयान बन्ध बाकी सभी बन्धों में सबसे श्रेष्ठ है । उड्डीयान बन्ध के सिद्ध होने पर स्वभाविक रूप से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है ।
Thanku sir ??
Thanks sir?
ॐ गुरुदेव*
आपका हृदय से आभार।
Abhar guru dev
Nice