ब्रह्मनाड़ी / सुषुम्ना नाड़ी के पर्यायवाची शब्द

 

सुषुम्णा शून्यपदवी ब्रह्मरन्ध्र महापथ: ।

श्मशानं शाम्भवी मध्यमार्गर्श्चेत्येकवाचका: ।। 4 ।।

 

भावार्थ :- सुषुम्ना, शून्यपदवी, ब्रह्मरन्ध्र, महापथ, श्मशान, शाम्भवी और मध्यमार्ग यह सभी ब्रह्मनाड़ी / सुषुम्ना नाड़ी के ही पर्यायवाची शब्द हैं ।

 

 

तस्मात् सर्वप्रयत्नेन प्रबोधयितुमीश्वरीम् ।

ब्रह्मद्वारमुखे सुप्तां मुद्राभ्यासं समाचरेत् ।। 5 ।।

 

भावार्थ :- इसलिए सुषुम्ना नाड़ी के मुख पर सोई हुई कुण्डलिनी को जगाने के लिए साधक को पूर्ण प्रयास के साथ मुद्राओं का अभ्यास करना चाहिए ।

 

दस मुद्राएं

 

महामुद्रा महाबन्धो महावेधश्च खेचरी ।

उड्डीयान मूलबन्धस्ततो जालन्धरा भिध: ।। 6 ।।

करणी विपरीताख्या वज्रोली शक्ति चालनम् ।

इदम् हि मुद्रा दशकं जरामरणनाशनम् ।। 7 ।।

 

भावार्थ :- महामुद्रा, महाबन्ध, महावेध, खेचरी, उड्डीयान बन्ध, मूलबन्ध, जालन्धर बन्ध, विपरीतकरणी, वज्रोली व शक्तिचालन ये दस मुद्राएं हैं । इन मुद्राओं का अभ्यास करने से साधक के सभी रोग नष्ट होते हैं और साथ ही मृत्यु के लिए उत्तरदायी सभी कारण भी नष्ट हो जाते हैं ।

 

मुद्राओं की उपयोगिता

 

आदिनाथोदितं दिव्यमष्टैश्वर्यप्रदायकम् ।

वल्लभं सर्वसिद्धानां दुर्लभं मरुतामपि ।। 8 ।।

 

 

भावार्थ :- आदिनाथ अर्थात भगवान शिव द्वारा उपदेशित यह दस प्रकार की मुद्राएं साधक को आठ प्रकार की दिव्य और ऐश्वर्य से युक्त सिद्धि प्रदान करवाती हैं । यह मुद्राएं सभी सिद्ध योगियों को प्रिय हैं तथा यह देवताओं को भी सहजता से प्राप्त नहीं होती हैं अर्थात उनके लिए यह दुर्लभ हैं ।

 

 

 मुद्राओं की गोपनीयता

 

गोपनीयं प्रयत्नेन यथा रत्नकरण्डकम् ।

कस्यचिन्नैव वक्तव्यं कुलस्त्रीसुरतं यथा ।। 9 ।।

 

भावार्थ :- जिस प्रकार बहुमूल्य रत्नों ( हीरे- मोती ) से भरी पिटारी को छुपाकर रखा जाता है । ठीक उसी प्रकार इन मुद्राओं को भी पूरी तरह से गुप्त रखना चाहिए । अनावश्य लोगों के सामने इनकी चर्चा नहीं करनी चाहिए । जैसे अच्छे कुल अर्थात घर की नारी सम्भोग आदि की चर्चा किसी के साथ नहीं करती ।

 

 

विशेष :- यहाँ पर मुद्राओं को गुप्त रखने का अभिप्राय यह बिलकुल भी नहीं है कि हमें मुद्राओं का ज्ञान किसी को भी नहीं देना चाहिए । यहाँ पर गुप्त रखने का अर्थ है कि इन मुद्राओं का ज्ञान कभी भी किसी अयोग्य, दुष्ट या गलत व्यक्ति को नहीं देना चाहिए । क्योंकि अयोग्य व्यक्ति इस अमूल्य ज्ञान के महत्त्व को नहीं समझता । जिससे वह इसका उपहास ( मजाक ) उड़ाने का ही काम करेगा । और यदि कोई दुष्ट व गलत व्यक्ति को इसका ज्ञान होता है तो वह इसका दुरुपयोग करने का काम करेगा । इसलिए इन अत्यंत उपयोगी व दिव्य शक्तियों को प्रदान कराने वाली मुद्राओं को गुप्त रखना चाहिए । पहले इस बात का पता लगाना चाहिए कि जिस व्यक्ति को हम यह ज्ञान देने जा रहे हैं । वह इसका पात्र है या नहीं ? जिस प्रकार श्लोक में अच्छे कुल की स्त्री का उदाहरण भी दिया गया है कि वह सम्भोग आदि गुप्त बातों की चर्चा किसी के सामने नहीं करती हैं । ऐसा करने से उनकी छवि व सम्मान दोनों की हानि होती है । तभी इन मुद्राओं को अत्यंत गोपनीय रखने की बात कही है ।

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