सिद्धासन से बहतर हजार
( 72000 ) नाड़ियों की शुद्धि
चतुरशीतिपीठेषु सिद्धमेव सदाभ्यसेत् ।
द्वासप्ततिसहस्त्राणां नाड़ीनां मलशोधनम् ।। 41 ।।
भावार्थ :- उन चौरासी आसनों में से साधक को सदा सिद्धासन का ही अभ्यास करना चाहिए । इसके अभ्यास से शरीर में स्थित सभी बहतर हजार ( 72000 ) नाड़ियों के मल की शुद्धि हो जाती है ।
विशेष :- इस श्लोक से हमें यह पता चलता है कि स्वामी स्वात्माराम ने हठप्रदीपिका में नाडियों की कुल संख्या बहतर हजार ( 72000 ) मानी है ।
बारह ( 12 ) वर्षों में सिद्धासन की सिद्धि
आत्मध्यायी मिताहारी यावद् द्वादशवत्सरसम् ।
सदा सिद्धासनाभ्यासाद्योगी निष्पत्तिमाप्नुयात् ।
किमन्यैर्बहुभि: पीठै: सिद्धे सिद्धासने सति ।। 42 ।।
भावार्थ :- आत्मा का अध्ययन अथवा चिन्तन करने वाला, मिताहार ( आहार में संयम ) करने वाला योगी साधक निरन्तर बारह ( 12 ) वर्षों तक सिद्धासन का अभ्यास करता है । वह निष्पत्ति अवस्था अर्थात मोक्ष या योग में सिद्धि को प्राप्त कर लेता है । जिसने सिद्धासन का अभ्यास कर लिया हो, उसे अन्य भिन्न- भिन्न प्रकार के आसन करने की क्या आवश्यकता है ?
प्राणानिले सावधाने बद्धे केवलकुम्भके ।
उत्पद्यते निरायासात् स्वयमेवोन्मनी कला ।। 43 ।।
भावार्थ :- प्राणवायु के नियंत्रित होने पर साधक का केवल कुम्भक सिद्ध हो जाता है । जिससे बिना किसी प्रयास के अर्थात अपने आप ही उन्ममी कला ( समाधि ) की प्राप्ति हो जाती है ।
विशेष :- यहाँ पर उन्मनी कला का अर्थ समाधि है ।
तीनों बन्धों का एकसाथ लगना
तथैकस्मिन्नेव दृढे बद्धे सिद्धासने सदा ।
बन्धत्रयमनायासात् स्वयमेवोपजायते ।। 44 ।।
भावार्थ :- इस प्रकार जब सिद्धासन दृढ़तापूर्वक सिद्ध हो जाता है । तब साधक के तीनों बन्ध ( जालन्धर बन्ध, उड्डियान बन्ध व मूलबन्ध ) बिना किसी विशेष प्रयास के अपने आप ही लग जाते हैं ।
श्रेष्ठ आसन, प्राणायाम, मुद्रा व नाद
नासनं सिद्धसदृशं न कुम्भ: केवलोपम: ।
न खेचरीसमा मुद्रा न नादसदृशो लय: ।। 45 ।।
भावार्थ :- सिद्धासन के तुल्य ( समान ) अन्य कोई आसन नहीं है । केवल कुम्भक के समान कोई अन्य कुम्भक अर्थात प्राणायाम नहीं है । खेचरी मुद्रा के समान अन्य कोई मुद्रा नहीं है । तथा नाद के समान अन्य कोई लय नहीं है ।
विशेष :- इस श्लोक में स्वामी स्वात्माराम ने योग के चार अंगों में से कौन- कौन श्रेष्ठ है ? इसकी चर्चा करते हुए सभी आसनों में से सिद्धासन को, सभी कुम्भको में से केवल कुम्भक को, सभी मुद्राओं में से खेचरी को, व सभी प्रकार के नादों में से लययोग को श्रेष्ठ बताया है ।
Thanku sir ??
?प्रणाम आचार्य जी! बहुत ही सुंदर व्याख्या है! आपका बहुत बहुत धन्यवाद! ओम ?
Thanks again sir
गुरु जी आपका मार्गदशन सर्वश्रष्ठ है।
Very good information , thank you sir
ॐ गुरुदेव*
हम सबको निरंतर योग रस का पान कराने हेतु आपका
हृदय से आभार।
धन्यवाद।