युवा वृद्धोऽतिवृद्धो वा व्याधितो दुर्बलोऽपि वा ।
अभ्यासात्सिद्धिमाप्नोति सर्वयोगेष्वतन्द्रित: ।। 66 ।।
भावार्थ :- युवा अर्थात जवान, बूढ़ा या बहुत बूढ़ा, रोगी हो या कमजोर । जो साधक आलस्य को त्यागकर योग का अभ्यास करता है । वह योग की सभी क्रियाओं में सिद्धि प्राप्त करता है ।
अभ्यास से ही सिद्धि प्राप्ति
क्रियायुक्तस्य सिद्धि: स्यादक्रियस्य कथं भवेत् ।
न शास्त्रपाठमात्रेण योगसिद्धि: प्रजायते ।। 67 ।।
भावार्थ :- योग में सिद्धि उसे ही मिलती है जो योग की क्रियाओं का अभ्यास करता है । जो यौगिक क्रियाओं का अभ्यास करता ही नहीं है । उसे सिद्धि कैसे मिल सकती है ? केवल ग्रन्थों को पढ़ने से योग में सिद्धि प्राप्त नहीं हो सकती । सिद्धि के लिए तो यौगिक क्रियाओं का अभ्यास करना अनिवार्य है ।
न वेषधारणं सिद्धे: कारणं न च तत्कथा ।
क्रियैव कारणं सिद्धे: सत्यमेतन्न संशय: ।। 68 ।।
भावार्थ :- योगी का वेश बना लेना अर्थात योगियों जैसे कपड़े व वेशभूषा बना लेना या योग की कथा अर्थात योग के विषय में चर्चा या कोई कहानी सुनने से योग में सिद्धि प्राप्त नहीं होती है । योग में सिद्धि प्राप्त करने का कारण केवल मात्र अभ्यास ही है । यौगिक क्रियाओं के अभ्यास द्वारा ही योग में सिद्धि प्राप्त की जा सकती है । इसमें किसी प्रकार का कोई सन्देह नहीं है ।
विशेष :- आजकल बहुत सारे व्यक्ति योगियों जैसी वेशभूषा पहन कर अपने आप को योगी बताने का झूठा प्रयास करते हैं । उनका कहना होता है कि हमारी कथा का वाचन करने मात्र से अर्थात केवल हमारी कथा सुनने से ही आपको योग में सिद्धि प्राप्त हो जाएगी । लेकिन इस प्रकार के सभी दावे निराधार होते हैं । मात्र योगी की वेशभूषा या कथा कहानियों से योग में किसी प्रकार की कोई सिद्धि नहीं मिल सकती । सिद्धि प्राप्त करने का मात्र एक ही आधार है और वह है यौगिक क्रियाओं का नियमित रूप से अभ्यास ।
पीठानि कुम्भकाश्चित्रा: दिव्यानि करणानि च ।
सर्वाण्यपि हठाभ्यासे राजयोगफलावधि ।। 69 ।।
भावार्थ :- योग के साधक को अनेक प्रकार के आसनों, अनेक प्रकार के कुम्भकों ( प्राणायाम ) व सभी प्रकार की यौगिक क्रियाओं का अभ्यास तब तक करना चाहिए जब तक उसे राजयोग अर्थात समाधि रूपी फल की प्राप्ति न हो जाये ।
विशेष :- यहाँ पर हठयोग की क्रियाओं का अभ्यास तब तक करने की बात कही गई है जब तक कि राजयोग अर्थात समाधि की प्राप्ति न हो जाये । अतः यहाँ पर भी यह स्पष्ट हो जाता है कि हठयोग साधना का उद्देश्य राजयोग की प्राप्ति ही है ।
।। इति श्री सहजानन्द सन्तानचिंतामणि स्वात्मारामयोगीन्द्रविरचितायां हठप्रदीपिकायामासनविधिकथनं नाम प्रथमोपदेश: ।।
भावार्थ :- इस प्रकार यह श्री सहजानन्द परम्परा के महान अनुयायी योगी स्वात्माराम द्वारा रचित हठप्रदीपिका ग्रन्थ में आसन की विधि बताने वाले कथन नामक पहला उपदेश पूर्ण हुआ ।
Thanku sir ??
ॐ गुरुदेव*
आपका बहुत बहुत आभार।
धन्यवाद।
thank u sir
Bhut abhar….
ज्ञान के मोती को एक माला में पिरोने का काम एक अच्छा शिक्षक ही कर सकता है ..???
थैंक्स sir