पद्मासन द्वारा मुक्ति
पद्मासने स्थितो योगी नाडीद्वारेण पूरितम् ।
मारुतं धारयेद्यस्तु स मुक्तो नात्र संशय: ।।
भावार्थ :- जो योगी पद्मासन की अवस्था में बैठकर नाड़ी द्वारा अन्दर ली गई प्राणवायु को शरीर के अन्दर ही रोके रखता है अर्थात केवल कुम्भक को करता है । वह बिना किसी सन्देह के अवश्य ही मुक्त हो जाता है ।
गल्फौ च वृषणस्याध: सीवन्या: पार्श्वयो: क्षिपेत् ।
दक्षिणे सव्यगुल्फं तु दक्षगुल्फं तु सव्यके ।। 52 ।।
हस्तौ तु जान्वो: संस्थाप्य स्वाङ्गुली: सम्प्रसार्य च ।
व्यात्तवक्त्रो निरीक्षेत नासाग्रं तु समाहित: ।। 53 ।।
सिंहासनं भवेदेतत् पूजितं योगिपुङ्गवै: ।
बन्धत्रितयसंधानं कुरुते चासनोत्तमम् ।। 54 ।।
भावार्थ :- अपने दोनों पैरों की एड़ियों को अण्डकोशों के नीचे सीवनी नाड़ी के पास स्थापित करें । बायें पैर की एड़ी को दायीं तरफ और दायीं एड़ी को बायीं तरफ रखें । अब दोनों हाथों की अंगुलियों को फैलाते हुए घुटनों पर रखें । मुहँ को पूरा शेर की तरह खोलते हुए नासिका के अगले हिस्से को देखें । यह आसन सभी योगियों द्वारा इस पूज्य आसन को सिंहासन कहते हैं । इस आसन को करने से तीनों बन्ध ( मूलबन्ध, उड्डियान बन्ध व जालन्धर बन्ध ) आसानी से सिद्ध हो जाते हैं ।
गल्फौ च वृषणस्याध: सीवन्या: पार्श्वयो: क्षिपेत् ।
सव्यगुल्फं तथा सव्ये दक्षगुल्फं तु दक्षिणे ।। 55 ।।
पार्श्वपादौ च पाणिभ्यां दृढं बद्ध्वा सुनिश्चलम् ।
भद्रासनं भवेदेतत् सर्वव्याधि विनाशनम्
गोरक्षासनमित्याहुरिदं वै सिद्ध योगिन: ।। 56 ।।
भावार्थ :- अपने दोनों पैरों की एड़ियों को अण्डकोशों के नीचे सीवनी नाड़ी के पास स्थापित करें । बायें पैर की एड़ी को दायीं तरफ और दायीं एड़ी को बायीं तरफ रखें । अब दोनों पैरों के अग्रभाग अर्थात घुटनों को मजबूती से पकड़कर पूरी तरह से स्थिर हो जाएं । इस प्रकार सभी रोगों का नाश करने वाला यह आसन भद्रासन कहलाता है । सिद्ध योगी इस आसन को गोरक्ष आसन कहते हैं ।
एवमासनबन्धेषु योगीन्द्रो विगतश्रम: ।
अभ्यसेन्नाडिकाशुद्धिं मुद्रादिपवन क्रियाम् ।। 57 ।।
भावार्थ :- इस प्रकार श्रेष्ठ योग साधकों को आसनों के अभ्यास द्वारा अपनी थकान मिटाने के बाद नाड़ीशुद्धि तथा मुद्रा आदि प्राणायाम की क्रियाओं का अभ्यास करना चाहिए ।
विशेष :- यहाँ पर इस श्लोक में आसनों के अभ्यास से थकान मिटाने की बात कही गई है । जिससे यह साबित होता है कि आसन करने से शारीरिक व मानसिक थकान दूर होती है । जिस किसी को भी आसन करने के बाद थकान आदि का अनुभव होता है । या तो वह आसन को गलत तरीके से कर रहे हैं या फिर वह आसन को ज्यादा समय तक कर रहे हैं । अतः आसन को पूरी विधि के साथ करने से साधक की थकान अवश्य ही दूर होती है ।
आसनं कुम्भकं चित्रं मुद्राख्यं करणं तथा ।
अथ नादानुसंधान मभ् या सानु क्रमो हठे ।। 58 ।।
भावार्थ :- आसन, कुम्भक, ( प्राणायाम ) तथा मुद्रा आदि क्रियाओं का अभ्यास करने के बाद साधक को नादानुसंधान का अभ्यास करना चाहिए । यही हठयोग करने का अभ्यास क्रम है ।
विशेष :- इस श्लोक में हठयोग साधना का अभ्यास क्रम बताया गया है । जिसमें पहले आसन का अभ्यास उसके बाद कुम्भक का फिर मुद्राओं का और अन्त में नादानुसंधान का अभ्यास करने की बात कही गई है ।
ब्रह्मचारी मिताहारी त्यागी योगपरायण: ।
अब्दादुर्ध्वं भवेत् सिद्धो नात्र कार्या विचारणा ।। 59 ।।
भावार्थ :- जो ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता है, अपने आहार पर संयम करता है अर्थात मिताहार करता है, जो त्यागी अर्थात जिसने सुखभोग की वस्तुओं का त्याग कर दिया है और पूरी तरह से योग के प्रति समर्पित है । ऐसा साधक बिना किसी सन्देह के एक वर्ष या उससे थोड़े अधिक समय में योग में सिद्धि प्राप्त कर लेता है ।
Thanku sir ??
धन्यवाद।
ॐ गुरुदेव*
आपका हृदय से आभार।
It’s really very nice
Thank you sir
Pranaam Sir! ? it’s just amazing that how easily swami ji says to get relaxed through asana. We need to work hard to reach to this level?
ऊॅ सर जी! आप का सहृदय आभर ।
धन्यवाद sir