ध्यान योग समाधि वर्णन

 

शाम्भवीं मुद्रिकां कृत्वा आत्मप्रत्यक्षमानयेत् ।

बिन्दुब्रह्ममयं दृष्ट्वा मनस्तत्र नियोजयेत् ।। 7 ।।

खमध्ये कुरु चात्मानं आत्ममध्ये च खं कुरु ।

आत्मानं खमयं दृष्ट्वा न किञ्चिदपि बाधते ।

सदानन्दमयो भूत्वा समाधिस्थो भवेन्नर: ।। 8 ।।

 

भावार्थ :-  शाम्भवी मुद्रा का अभ्यास करते हुए साधक को अपनी आत्मा का साक्षात्कार करना चाहिए साथ ही ब्रह्म स्वरूप बिन्दु को देखते हुए वहीं पर अपने मन को केन्द्रित करें ।

अब अपनी आत्मा को आकाश के बीच में व आकाश को आत्मा के बीच में स्थित करें । आत्मा को आकाश के बीच में स्थित करने पर किसी प्रकार की कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती । ऐसा करने पर मनुष्य सदैव समाधि को प्राप्त करके आनन्दमय हो जाता है । यह ध्यान योग समाधि कहलाती है ।

 

 

विशेष :-  शाम्भवी मुद्रा में आत्मा को कहा पर स्थित किया जाता है ? आकाश के मध्य अथवा बीच में ।

Related Posts

February 25, 2019

तत्त्वं लयामृतं गोप्यं शिवोक्तं विविधानि च । तेषां संक्षेपमादाय कथितं मुक्तिलक्षणम् ।। 22 ।। ...

Read More

February 25, 2019

आत्मा घटस्थचैतन्यमद्वैतं शाश्वतं परम् । घटादिभिन्नतो ज्ञात्वा वीतरागं विवासनम् ।। 20 ।।   भावार्थ ...

Read More

February 25, 2019

विष्णु की सर्वत्र विद्यमानता   जले विष्णु: स्थले विष्णुर्विष्णु: पर्वतमस्तके । ज्वालामालाकुले विष्णु: सर्वं ...

Read More

February 25, 2019

राजयोग समाधि वर्णन   मनोमूर्च्छां समासाद्य मन आत्मनि योजयेत् । परमात्मन: समायोगात् समाधिं समवाप्नुयात् ...

Read More
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked

{"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}