ध्यान योग समाधि वर्णन
शाम्भवीं मुद्रिकां कृत्वा आत्मप्रत्यक्षमानयेत् ।
बिन्दुब्रह्ममयं दृष्ट्वा मनस्तत्र नियोजयेत् ।। 7 ।।
खमध्ये कुरु चात्मानं आत्ममध्ये च खं कुरु ।
आत्मानं खमयं दृष्ट्वा न किञ्चिदपि बाधते ।
सदानन्दमयो भूत्वा समाधिस्थो भवेन्नर: ।। 8 ।।
भावार्थ :- शाम्भवी मुद्रा का अभ्यास करते हुए साधक को अपनी आत्मा का साक्षात्कार करना चाहिए साथ ही ब्रह्म स्वरूप बिन्दु को देखते हुए वहीं पर अपने मन को केन्द्रित करें ।
अब अपनी आत्मा को आकाश के बीच में व आकाश को आत्मा के बीच में स्थित करें । आत्मा को आकाश के बीच में स्थित करने पर किसी प्रकार की कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती । ऐसा करने पर मनुष्य सदैव समाधि को प्राप्त करके आनन्दमय हो जाता है । यह ध्यान योग समाधि कहलाती है ।
विशेष :- शाम्भवी मुद्रा में आत्मा को कहा पर स्थित किया जाता है ? आकाश के मध्य अथवा बीच में ।
Thanks sir
धन्यवाद।
short explanation about sambhavi mudra dr sahab.
Thanks again sir
ॐ गुरुदेव!
आपका परम आभार।
Thnx sir
Dr. Sir repeat Ho Gaya… Kal vala article.
Prnam Acharacle Ji. Nice explanation