समाधि के छ: ( 6 ) प्रकार

 

शाम्भव्या चैव भ्रामर्या खेचर्या योनिमुद्रया ।

ध्यानं नादं रसानन्दं  लयसिद्धिश्चुतुर्विधा ।। 5 ।।

पञ्चधा भक्तियोगेन मनोमूर्च्छा च षड्विधा ।

षड्विधोऽयं राजयोग: प्रत्येकमवधारयेत् ।। 6 ।।

 

भावार्थ :-  शाम्भवी, भ्रामरी, खेचरी व योनिमुद्राओं से क्रमशः ध्यान योग समाधि, नादयोग समाधि, रसानन्द समाधि व लयसिद्धि योग नामक चार प्रकार की समाधियों में सिद्धि प्राप्त होती है ।

पाँचवी प्रकार की समाधि भक्तियोग व छठी मनोमूर्च्छा से राजयोग नामक समाधि की प्राप्ति होती है । साधक को प्रत्येक समाधि को धारण ( आत्मसात ) करना चाहिए ।

 

 

विशेष :-  ध्यान योग समाधि किस मुद्रा का परिणाम है ? उत्तर है शाम्भवी मुद्रा का । खेचरी मुद्रा के अभ्यास से कौन सी समाधि की प्राप्ति होती है ? उत्तर है रसानन्दयोग समाधि की । भ्रामरी मुद्रा किस समाधि की परिचायक है ? उत्तर है नादयोग समाधि की । लयसिद्धि योग समाधि किसके अभ्यास से सिद्ध होती है ? उत्तर है योनिमुद्रा के अभ्यास से । भक्तियोग समाधि को कौन सी समाधि माना गया है ? उत्तर है पाँचवी समाधि । सबसे उच्च व अन्तिम समाधि का क्या नाम है ? उत्तर है राजयोग समाधि । राजयोग समाधि किस मुद्रा का फल है ? उत्तर है मनोमूर्च्छा मुद्रा का । घेरण्ड संहिता में कुल कितनी समाधि बताई गई हैं ? उत्तर है छ: ( 6 ) प्रकार की ।

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  1. Please explain ALL THESE 6 SAMADHIS ARE SIX ASPECTS OF RAJYOG . YOU MENTIONED LAST AND HIGHEST SAMADHI IS RAJYOG. IT IS NOT CLEAR.

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