तत्त्वं लयामृतं गोप्यं शिवोक्तं विविधानि च ।

तेषां संक्षेपमादाय कथितं मुक्तिलक्षणम् ।। 22 ।।

 

भावार्थ :-  इस समाधि रूपी गुप्त अमृत तत्त्व जिसकी विधि स्वयं भगवान शिव के द्वारा बताई गई है । मैंने उस समाधि के सभी लक्षणों को संक्षिप्त रूप में बता दिया है ।

 

 

इति ते कथितश्चण्ड! समाधिर्दुर्लभ: पर: ।

यं ज्ञात्वा न पुनर्जन्म जायते भूमिमण्डले ।। 23 ।।

 

भावार्थ :- हे चन्डकापालिक! यद्यपि यह समाधि रूपी श्रेष्ठ ज्ञान बहुत ही दुर्लभ ( कठिनता से प्राप्त होने वाला ) है । जिसका वर्णन मैंने तुम्हारे सामने किया है । जो भी साधक इसे जान लेता है । वह साधक जन्म- मरण के बंधन से पूरी तरह मुक्त हो जाता है अर्थात् उसका धरती पर दोबारा जन्म नहीं होता ।

 

 

 

विशेष :-  समाधि प्राप्ति का क्या फल अथवा लक्षण कहा गया है ? उत्तर है पुनर्जन्म मुक्ति अथवा जन्म- मरण के क्रम से मुक्ति ।

 

।। इति सप्तमोपदेश: समाप्त: ।।

 

इसी के साथ घेरण्ड संहिता का सातवां      अध्याय ( समाधि योग वर्णन ) समाप्त हुआ ।

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  1. बहुत बहुत धन्यवाद।आदरणीय आचार्यजी आपके प्रतिदिन के पोस्ट की बदौलत हम नित्य प्रति अपना अध्ययन कर पाए।

  2. ॐ गुरुदेव!
    आपने हम योगार्थियों के लिए
    इतना घनघोर व अथक परिश्रम
    किया । अस्तु आपके इस पुरुषार्थ को
    शत_ शत नमन ।

  3. ????????अतिउत्तम सर????☘
    मैंने आज अभी आपके द्वारा वर्णित सम्पूर्ण घेरण्ड संहिता पढ़ ली।
    अतिसुन्दर व्याख्या की गयी है आपके द्वारा।
    ????????????आपका बहुत बहुत धन्यवाद????????????

  4. Sir maine aapke dwara likha gaya dono book purchase kiya hai bahut hi accha tarah se samjhaye hai dhanyavad per guruji yahan pe google main aapka book nahi khul pa raha hai jo pahle khulta tha pse bataye yesa kyon ho raha hai

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