आत्मा घटस्थचैतन्यमद्वैतं शाश्वतं परम् ।
घटादिभिन्नतो ज्ञात्वा वीतरागं विवासनम् ।। 20 ।।
भावार्थ :- इस शरीर में स्थित आत्मा ( चैतन्य ) ही परम शाश्वत अर्थात् सत्य और अद्वैत ( एक ही भाव से युक्त ) है । इसे ( आत्मा को ) शरीर से अलग जानने से ही साधक राग व वासना से रहित होता है ।
एवं विधि: समाधि: स्यात् सर्वङ्कल्पवर्जित: ।
स्वदेहे पुन्नदारादिबान्धवेषु धनादिषु ।
सर्वेषु निर्ममो भूत्वा समाधिं समवाप्नुयात् ।। 21 ।।
भावार्थ :- इस प्रकार यह समाधि सभी प्रकार के संकल्पों से रहित होती है । इसलिए साधक को अपने शरीर, पुत्र, स्त्री, मित्र, सहयोगियों व धन आदि के प्रति ममता रहित ( आसक्ति रहित ) होकर समाधि को प्राप्त करना चाहिए ।
विशेष :- समाधि भाव को प्राप्त करने के लिए साधक को किन- किन आसक्तियों से रहित होना जरूरी है ? उत्तर है अपने शरीर, पुत्र, स्त्री, मित्र, सहयोगी व धन की आसक्ति से रहित होना आवश्यक है ।
Prnam Aacharya ji om
nice?
ॐ गुरुदेव!
आपका बहुत बहुत आभार।
Dhanywad sir net k new Upanishads par iron lecher care net kids tayari k liy plise sir upob par care Dhanywad
धन्यवाद।
Dr sahab nice direction to get samadi.
Main aise pustak khareed na chahata hoon jisme pranayam, mudra, kundalini , bandh etc. Kaa visad varnan ho. Original gherand sanhita prapt ho sakti hain ya nahi ho sakti ha to uska price kitna hain