राजयोग समाधि वर्णन
मनोमूर्च्छां समासाद्य मन आत्मनि योजयेत् ।
परमात्मन: समायोगात् समाधिं समवाप्नुयात् ।। 16 ।।
भावार्थ :- साधक मनोमूर्च्छा की साधना करके अपने मन को आत्मा में केन्द्रित करे । इस प्रकार मन का परमात्मा से संयोग ( मिलन ) होने पर साधक को समाधि की प्राप्ति हो जाती है । यह राजयोग समाधि कहलाती है ।
विशेष :- राजयोग की समाधि किसके द्वारा होती है ? उत्तर है मनोमूर्च्छा द्वारा ।
समाधि की उपयोगिता
इति ते कथितश्चण्ड! समाधिर्मुक्तिलक्षणम् ।
राजयोगसमाधि: स्यादेकात्मन्येव साधनम् ।
उन्मनी सहजावस्था सर्वे चैकात्मवाचका: ।। 17 ।।
भावार्थ :- हे चण्डकापालिक! इस प्रकार मैंने तुम्हें मुक्ति प्राप्त करवाने वाली समाधि के लक्षण बताये हैं । मन व आत्मा में एकरूपता करवाने वाले साधन ही समाधि कहलाते हैं । राजयोग समाधि, उन्मनी अवस्था या सहजावस्था यह सभी एक ही समाधि के पर्यायवाची शब्द हैं ।
विशेष :- समाधि के पर्यायवाची किनको माना गया है ? उत्तर है राजयोग, उन्मनी अवस्था व सहजावस्था को ।
Guru ji nice explain about samadi.
धन्यवाद सर…
ॐ गुरुदेव!
आपको हृदय से परम आभार।
Om prnam Aacharya ji! Sunder