आमकुम्भमिवाम्भस्थो जीर्यमाण: सदा घट: ।
योगानलेन सन्दह्य घटशुद्धिं समाचरेत् ।। 8 ।।
भावार्थ :- जिस प्रकार कच्चे घड़े में पानी डालने से वह निरन्तर गलना शुरू हो जाता है । उसी कच्चे घड़े के समान मनुष्य का शरीर की प्रतिक्षण कमजोर होता रहता है । उस शरीर रूपी घड़े को योग रूपी अग्नि में तपाने से वह पूरी तरह से शुद्ध हो जाता है । जिस प्रकार घड़े को अग्नि में तपाने के बाद वह पानी से गलता नहीं है । ठीक उसी प्रकार इस श्लोक में योग को अग्नि का रूप और शरीर को घड़े का रूप माना गया है ।
सप्तांग योग ( योग के सात अंग )
शोधनं दृढता चैव स्थैर्यं धैर्यञ्च लाघवम् ।
प्रत्यक्षञ्च निर्लिप्तञ्च घटस्य सप्तसाधनम् ।। 9 ।।
भावार्थ :- शरीर को परिपक्व करने के लिए योग के सात अंगों की चर्चा की गई है । जो इस प्रकार हैं – शोधन, दृढता, स्थिरता, धैर्य ( धीरता ), लघुता ( हल्कापन ), प्रत्यक्षीकरण व निर्लिप्तता । अगले श्लोकों में इन सभी अंगों से सम्बंधित यौगिक क्रियाओं का वर्णन किया गया है ।
सप्त ( योग ) साधनों के लाभ
षट्कर्मणा शोधनञ्च आसनेन भवेद्दृढम् ।
मुद्रया स्थिरता चैव प्रत्याहारेण धीरता ।। 10 ।।
प्राणायामाल्लाघवञ्चध्यानात् प्रत्यक्षमात्मनि ।
समाधिना च निर्लिप्तं मुक्तिरेवं न संशय: ।। 11 ।।
भावार्थ :- षट्कर्म अर्थात् छ: शुद्धि क्रियाओं के अभ्यास से शुद्धि, आसनों के अभ्यास से मजबूती, मुद्राओं से स्थिरता, प्रत्याहार से धैर्य ( धीरता ), प्राणायाम से हल्कापन, ध्यान से प्रत्यक्षीकरण ( साक्षात्कार ) और समाधि से निर्लिप्तता ( मुक्ति ) की प्राप्ति होती है । इनमें किसी प्रकार का कोई सन्देह ( शक ) नहीं है ।
विशेष :- योग के सात अंगों से साधक को अलग- अलग प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है । जिनको परीक्षा की दृष्टि से अति उपयोगी माना जाता है । इसके लिए हम यहाँ पर इनको सार रूप में भी लिख रहे हैं ।
- षट्कर्म = शोधन
- आसन = दृढता ( मजबूती )
- मुद्रा = स्थिरता
- प्रत्याहार = धैर्य ( धीरता )
- प्राणायाम = लघुता ( हल्कापन )
- ध्यान = प्रत्यक्षीकरण ( साक्षात्कार )
- समाधि = निर्लिप्तता ( मुक्ति या मोक्ष )
अति सुंदर ।।
ॐ गुरुदेव!
आपका बहुत बहुत आभार।
Thanks a lot for being a part of this study group
?प्रणाम आचार्य जी! धन्यवाद!ओम?
अति सुंदर
धन्यवाद।