नेति क्रिया
यह षट्कर्म का तीसरा अंग है । नेति क्रिया द्वारा हमारे शीर्ष प्रदेश ( शरीर का ऊपरी भाग ) की शुद्धि होती है । जिसमें हमारी आँखों, नाक, कान व गले की शुद्धि होती है । यहाँ पर भी हठ प्रदीपिका की तरह ही नेति के एक ही प्रकार का वर्णन किया गया है ।
वितस्तिमानं सूक्ष्मसूत्रं नासानाले प्रवेशयेत् ।
मुखान्निर्गमयेत्पश्चात् प्रोच्यते नेतिकर्मकम् ।। 51 ।।
भावार्थ :- एक बिता लम्बा अर्थात् लगभग आधा हाथ लम्बा ( लगभग 12 अँगुल लम्बा ) पतले सूती धागों के समूह ( कई सारे सूती धागे ) लेकर उसे नासिका के एक भाग से अन्दर डालकर उसे मुहँ द्वारा बाहर निकाल देने को की प्रक्रिया को नेति क्रिया कहा जाता है ।
विशेष :- जब भी हम नेति के विषय में किसी से बात करते हैं तो सामान्य रूप से नेति के तीन या चार प्रकार सुनने को मिलते हैं । जिनमें जलनेति, सूत्रनेति, रबड़नेति, घृतनेति आदि – आदि । जबकि हठयोग के किसी भी ग्रन्थ में इनका वर्णन नहीं किया गया है । नेति के रूप में केवल सूत्र नेति को ही मान्यता मिली है । यहाँ पर हम नेति के सम्बंध में उत्पन्न होने वाले सभी सन्देहों का निवारण करने का प्रयास करेंगे ।
जलनेति :- जलनेति में जल के द्वारा नासिका मार्ग की शुद्धि की जाती है । लेकिन किसी हठयोग के ग्रन्थ में इसका वर्णन नहीं मिलता । नेति के इस प्रकार की का निर्देशन कुछ आधुनिक योग आचार्यों ने किया है । उनका मानना है कि सूत्रनेति से पहले यदि साधक जलनेति का अभ्यास करता है तो उसे सूत्रनेति करने में आसानी होगी । उन्होंने जलनेति को सूत्रनेति के पूर्व कर्म ( प्री वर्कआउट ) के रूप में माना है । जो कि पूरी तरह से न्याय संगत है । जिस प्रकार सूर्य नमस्कार व आसन करने से पूर्व साधक अपने शरीर को गर्माने ( वार्मिंग -अप ) के लिए कुछ सूक्ष्म क्रियाओं का अभ्यास करता है । ताकि कठिन अभ्यास करने से पहले उसका शरीर अच्छी तरह से तैयार हो सके । ठीक इसी प्रकार जलनेति को भी सूत्रनेति से पहले किया जाने वाली क्रिया माना जाता है । इससे साधक अपनी नासिका को सूत्रनेति करने के लिए अच्छी तरह से तैयार कर लेता है । साथ ही जलनेति करने से साधक को सूत्रनेति से मिलने वाले कुछ लाभ भी मिलते हैं । अतः आधुनिक योग आचार्यों द्वारा निर्देशित यह अभ्यास करने योग्य है ।
रबड़नेति :- रबड़नेति को भी नेति क्रिया के एक प्रकार के रूप में प्रयोग किया जाता है । जिसमें साधक एक रबड़ की पतली पाइप द्वारा नासिका मार्ग की शुद्धि करता है । कुछ योग आचार्यों ने इसे सूत्रनेति के विकल्प के रूप में प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया है । रबड़नेति के विषय में मेरा मत थोड़ा अलग है । मैं व्यक्तिगत रूप से रबड़नेति करने के पक्ष में नहीं हूँ । रबड़नेति के अभ्यास से साधक को लाभ की बजाय हानि होती है । इसके पीछे मेरे दो- तीन तर्क हैं । आप भी यदि इन तर्कों पर विचार करेंगे तो आपको भी ऐसा ही प्रतीत होगा ।
- रबड़नेति का निर्माण रबड़ से होता है । रबड़ की किसी भी वस्तु या पदार्थ को बनाते हुए कई तरह के कैमिकलों का प्रयोग किया जाता है । जो कि स्वास्थ्य के लिए सौ प्रतिशत हानिकारक होते हैं । जब भी आप रबड़नेति को नाक द्वारा सूँघने का प्रयास करेंगे तो आपको उसमें से एक अजीब प्रकार की दुर्गन्ध आएगी । वह दुर्गन्ध उन कैमिकलों की होती है जिनसे उस रबड़नेति का निर्माण हुआ है । अब आप सोचें कि जिस व्यक्ति को पहले से ही एलर्जी की समस्या है । यदि वह रबड़नेति का अभ्यास करता है तो क्या रबड़नेति के कैमिकल से उसकी एलर्जी नहीं बढ़ेगी ? क्या वह रबड़नेति नाक जैसे अति संवेदनशील अंग के अन्दर जाने पर अपना दुष्प्रभाव नहीं दिखाएगी ?
- दूसरा रबड़नेति के बनने के बाद उसके ऊपर लाल रंग की परत चढ़ाई जाती है । अब आप ररंग बनाने की विधि के विषय में जानकारी हासिल करोगे तो आपको पता चलेगा कि कोई भी रंग बिना कैमिकल के बन ही नहीं सकता । इससे पता चलता है कि रबड़नेति के निर्माण में एक बार नहीं बल्कि दो- दो बार विभिन्न प्रकार के कैमिकलों का प्रयोग किया जाता है । अब आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं कि नासिका जैसे अति संवेदनशील अंग जो थोड़ी सी प्रतिकूल गन्ध को सूँघने पर ही जहाँ से छीकें आना शुरू हो जाती हैं । वहाँ पर इतने कैमिकलों से तैयार की गई रबड़नेति का क्या असर पड़ता होगा ?
- तीसरा रबड़नेति को कई बार प्रयोग करने से उसकी मजबूती भी कम होने लगती है । जिससे उसके टूटने की आशंका ज्यादा हो जाती है । साथ ही सर्दी के मौसम में रबड़ में अकड़न आ जाती है । उससे भी उसका टूटने का खतरा बढ़ जाता है । दोनों ही कारणों से रबड़नेति करते समय उसके बीच में से टूटने का खतरा लगातार बना रहता है । जिससे साधक को किसी भी प्रकार की हानि हो सकती है ।
ऊपर वर्णित कारणों से मुझे लगता है कि रबड़नेति का प्रयोग योग साधकों के लिए हितकारी नहीं है ।
घृत, तेल व दुग्धनेति :- हमें बहुत बार घृत व दुग्धनेति के विषय में भी सुनने को मिलता है । इनमें से घृत नेति को हितकारी माना जा सकता है । क्योंकि घृत से नासिका मार्ग का संचालन सरल हो जाता है । जिससे कफ की निवृत्ति होती है, आँखों की रोशनी भी बढ़ती है और साथ ही सिर दर्द व माइग्रेन जैसी जटिल समस्या भी समाप्त हो जाती है । लेकिन यहाँ पर घृतनेति का अर्थ यह बिलकुल भी नहीं है कि जलनेति की तरह ही घृतनेति में घी का प्रयोग किया जाता है । घृतनेति में गुनगुने शुद्ध देसी घी की दो – चार बूंदें ही नाक में डाली जाती हैं । जिसको हम रात को सोने करते हैं तो इसका ज्यादा लाभ मिलता है । दूसरा कुछ व्यक्ति तेल नेति भी करते हैं । जिसकी विधि बिलकुल घृतनेति की तरह ही होती है । यह भी घृतनेति की भाँति ही लाभ देने वाली होती है । इसके साथ ही हम दुग्धनेति की भी बात करते हैं । दुग्धनेति में यही क्रिया दूध के साथ कि जाती है । इस क्रिया को भी ज्यादा हितकारी नहीं माना जाता है । इस क्रिया में लाभ की बजाय हानि होने की संभावना ज्यादा होती है ।
अतः मेरे मतानुसार जलनेति, सूत्रनेति व घृत अथवा तेलनेति करने से साधक को कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं । वहीं रबड़नेति व दुग्धनेति करने पर हानि होने की प्रबल संभावना रहती है । इसके साथ ही यह बात भी स्पष्ट हो गई है कि हठ प्रदीपिका व घेरण्ड संहिता में नेति क्रिया के एक ही प्रकार का वर्णन किया गया है । जिसे सूत्रनेति कहा जाता है । अन्य सभी प्रकार आधुनिक योग आचार्यों के अपने निजी मत हैं ।
नेति क्रिया के लाभ
साधनान्नेतियोगस्य खेचरीसिद्धि माप्नुयात् ।
कफदोषा विनश्यन्ति दिव्यदृष्टि: प्रजायते ।। 52 ।।
भावार्थ :- नेति क्रिया की साधना से योगी की खेचरी मुद्रा सिद्ध होती है । इसके साधक के सभी प्रकार के कफ रोगों का नाश होता है और उसे दिव्य दृष्टि की प्राप्ति होती है ।
Most valuable information ……thanks alot sir.
ॐ गुरुदेव!
आपका बहुत बहुत आभार।
Hum aapke bahut bahut aabhari h,
Guuruji ?
Wah ji wah
Prnam Aacharya Ji! Kya neti prstut ki hai aapne nak ke sath sath dimag v khul gya?? bhut khub??om