मूलशोधन धौति

 

अपानक्रूरता तावद्या वन्मूलं न शोधयेत् ।

तस्मात् सर्वप्रयत्नेन मूलशोधनमाचरेत् ।। 43 ।।

 

भावार्थ :- जब तक शरीर के मूल भाग की शुद्धि नहीं होती तब तक शरीर में अपान वायु ( अपान नामक प्राण जो गुदा प्रदेश में स्थित होता है ) का प्रकोप ( असन्तुलन ) बना रहता है । अपान वायु के प्रकोप से बचने के लिए हमें इसके लिए सभी प्रकार के प्रयत्न करके मूलशोधन क्रिया का अभ्यास करना चाहिए ।

 

 

विशेष :- मूलशोधन धौति के अन्य भाग नहीं हैं । इसका यही एक ही प्रकार है । मूलशोधन में गुदा प्रदेश की शुद्धि की जाती है । इसके सम्बन्ध में परीक्षा में पूछा जा सकता है कि मूलशोधन धौति के कितने प्रकार हैं ? जिसका उत्तर है एक होगा और दूसरा मूलशोधन में शरीर के किस भाग की शुद्धि की जाती है ? जिसका उत्तर होगा गुदा प्रदेश ।

 

 

पीतमूलस्य दण्डेन मध्यमाङ्गुलिनापि वा ।

यत्नेन क्षालयेद् गुह्यं वारिणा च पुनः पुनः ।। 44 ।।

 

भावार्थ :- हल्दी की जड़ से या मध्य अर्थात् बीच वाली अँगुली ( सबसे बड़ी ) के द्वारा जल के सहयोग से प्रयत्न पूर्वक गुदा मार्ग को बार- बार धोये अर्थात् उसकी सफाई करें । यह क्रिया मूलशोधन कहलाती है ।

 

 

विशेष :- मूलशोधन धौति को करने के लिए हल्दी की जड़ का ही प्रयोग करने की बात क्यों कही गई है ? इसके पीछे हमें ऋषि के वैज्ञानिक दृष्टिकोण का पता चलता है । हल्दी को सबसे बड़े कीटाणु नाशक ( एंटीबायोटिक ) के रूप में जाना जाता है । यह प्रकृति के द्वारा दी गई सबसे प्रभावी कीटाणु नाशक औषधि है । भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आपने देखा होगा कि यदि किसी व्यक्ति को किसी भी प्रकार की चोट लगती है तो ग्रामीण लोग झट से उस चोट पर हल्दी का पाउडर लगाते हैं । साथ ही जिस व्यक्ति को चोट लगी है उसे गर्म दूध में हल्दी पाउडर डालकर पिलाते हैं । ताकि हल्दी अन्दर और बाहर दोनों ओर से अपना काम करे । इस प्रकार के ईलाज का आज तक कोई विकल्प नहीं मिला है । यह सबसे तेज असर करने वाला प्रभावी तरीका है । भारत देश में गाँव का प्रत्येक व्यक्ति इस अचूक नुस्खे को बखूबी जानता और अपनाता है । इस अचूक उपाय के ऊपर हाल ही के दिनों में बहुत ज्यादा रिसर्च हुई हैं । जिससे यह नुस्खा आज पूरे यूरोप व अमेरिका में भी बड़े पैमाने पर प्रयोग में लाया जा रहा है । उन्होंने भी हल्दी के चमत्कारिक गुणों को पहचान कर इसका प्रयोग शुरू कर दिया है । इसलिए घेरण्ड ऋषि ने भी मूलशोधन क्रिया में हल्दी की जड़ का प्रयोग करने की बात कही है । ऐसा करने से गुदा में किसी भी प्रकार के संक्रमण होने का खतरा समाप्त हो जाता है ।

 

 

 मूलशोधन लाभ

 

वारयेत्कोष्ठकाठिन्यमामाजीर्णं निवारयेत् ।

कारणं कान्तिपुष्ट्योश्च वह्निमण्डल दीपनम् ।। 45 ।।

 

भावार्थ :- मूलशोधन क्रिया के अभ्यास से पेट का कड़ापन व अपच ( भोजन का न पचना ) दूर होता है । चेहरे पर चमक आती है और शरीर बलिष्ठ ( मजबूत ) बनता है । इसके अलावा मूलशोधन धौति से साधक की जठराग्नि अत्यंय तीव्र हो जाती है । जिससे पाचन तंत्र से जुड़ी सभी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं ।

 

 

विशेष :- मूलशोधन धौति के साथ ही धौति क्रिया के सभी तेरह (13 ) अंगों की व्याख्या पूर्ण हुई ।

Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked

  1. ओम् गुरुदेव!
    समस्त धौति क्रियाओं की
    अति सुन्दर व्याख्या की है आपने।
    इसके लिए आपको हृदय से आभार।

{"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}