सातवां अध्याय ( ज्ञान- विज्ञान योग )

सातवें अध्याय में योगीराज श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि इस ब्रह्म ज्ञान को जानने के बाद कोई भी ऐसा ज्ञान शेष नहीं बचता है जिसे जानना जरूरी हो ।

इसमें कुल तीस ( 30 ) श्लोकों का वर्णन किया गया है ।

यहाँ पर परब्रह्ना की मुख्य आठ प्रकार की प्रकृति ( पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार ) का वर्णन किया है । जिसे प्रकृति की अपरा श्रेणी कहा गया है । इसके अलावा प्रकृति की परा श्रेणी का भी वर्णन किया गया है । अपरा को निम्न व परा को उच्च श्रेणी की प्रकृति बताया है । सभी प्राणियों की उत्पत्ति का आधार इन अपरा व परा प्रकृति को ही माना है ।

इसके अतिरिक्त इस अध्याय में भक्त के चार प्रकारों का वर्णन किया गया है । जो कि अत्यंत महत्वपूर्ण है । गीता के अनुसार इस संसार में चार प्रकार के भक्त होते हैं । ‘चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन’ अर्थात् चार प्रकार के भक्त मेरा भजन करते हैं :- 1. आर्त , 2. अर्थार्थी, 3. जिज्ञासु, 4. ज्ञानी । इन सभी भक्तों में से भगवान को सबसे प्रिय कौन सा भक्त लगता है ? इसके विषय में श्रीकृष्ण कहते हैं कि ‘प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रिय:’ अर्थात् इनमें से मुझे ज्ञानी भक्त सबसे अथवा अत्यंत प्रिय है । इसके साथ ही आर्त भक्त को सबसे निकृष्ट भक्त माना गया है ।

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  1. ऊॅ सर ! मैने विज्ञापन देखना बन्द कर दिया है । केवल योग और आध्यात्म से जुड़ी चीज ही देखता हूँ ।

  2. ॐ गुरुदेव!
    गीतामृत का रसास्वादन कराने हेतु आपका
    हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।

  3. Respected sir,
    With Due Respect, If possible please write the meaning of words which are written in sholakas As written in your patanjali yoga sutras.

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