सोलहवां अध्याय ( दैवासुर सम्पद् विभागयोग )
जिस प्रकार नाम से ही विदित होता है कि इस अध्याय में दैवी व आसुरी प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों के लक्षणों का वर्णन किया गया है ।
इसमें कुल चौबीस ( 24 ) श्लोकों के द्वारा दैवी व आसुरी शक्तियों का वर्णन किया गया है ।
इसमें पहले दैवी सम्पदा के छब्बीस ( 26 ) गुणों का वर्णन किया गया है । जो इस प्रकार हैं :- निडरता, शुद्ध सात्विक वृत्ति, ज्ञान में आस्था, दान, दम, यज्ञ, स्वाध्याय, तप, सरलता, अहिंसा, सत्य, क्रोध शून्यता, अहंकार शून्यता, शान्ति, अपैशुन अर्थात् पीठ पीछे बात न करना, दयाभाव, लालच न करना, कोमलता, लज्जा, चञ्चलता का अभाव, तेजस्विता, क्षमाशीलता, धैर्य, शुद्धता का भाव, विद्रोह न करना, घमण्ड न करना । यह ऊपर वर्णित छब्बीस गुण दैवी सम्पदा से युक्त पुरुषों के होते हैं ।
इसके बाद छ: ( 6 ) आसुरी सम्पदा के लक्षणों को बताते हुए कहा है कि दम्भ, दर्प, अभिमान या घमण्ड, क्रोध, वाणी में निष्ठुरता अथवा कठोरता व अज्ञान । यह छ: आसुरी प्रवृत्ति के व्यक्तियों के लक्षण हैं ।
दैवी सम्पदा से युक्त व्यक्तियों को सात्विक व श्रेष्ठ गुण वाला माना जाता है जबकि आसुरी सम्पदा से युक्त व्यक्तियों को दुष्ट अथवा निकृष्ट माना जाता है ।
इसके बाद श्रीकृष्ण कहते हैं कि नरक के तीन द्वार कहे गए हैं जो व्यक्ति का सर्वनाश करते हैं । अतः जितना जल्दी हो सके इनको त्याग देना चाहिए । यह नरक के तीन द्वार निम्न हैं :- काम, क्रोध व लोभ । अन्त में कार्य और अकार्य में भेद अर्थात् अंतर जानने के लिए शास्त्रों का आश्रय लेने की बात कही गई है ।
Thank you sir
धन्यवाद सर
सर दम्भ और दर्प क्या होता है ?
Dr sahab nice explain about dev and ashura quality and how benefit to sacrifies ashura quality.
ॐ गुरुदेव!
बहुत सुन्दर व्याख्या ।