बारहवां अध्याय ( भक्तियोग )
इस अध्याय में सच्चे भक्त के गुणों का वर्णन किया गया है साथ ही श्रीकृष्ण बताते हैं कि उनको किस प्रकार का भक्त सबसे अधिक प्रिय है ?
इस अध्याय में कुल बीस ( 20 ) श्लोकों का ही वर्णन किया गया है । सर्वप्रथम अर्जुन पूछता है कि जो सदा योगयुक्त होकर तुम्हारा स्मरण और ध्यान करते हैं और जो अव्यक्त व अविनाशी ब्रह्मा की उपासना करते हैं । उनमें से उत्तम कौन होता है ? इसका उत्तर देते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो भक्त सदा मन लगाकर, चित्त से युक्त होकर, श्रद्धा भाव से मेरी उपासना या ध्यान करते हैं । वह उत्तम योगी होते हैं ।
प्रिय भक्त की योग्यताओं को बताते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो किसी से भी द्वेष नहीं करता और सबसे मित्रतापूर्ण व्यवहार करता है, जो प्रत्येक अवस्था ( सुख- दुःख ) में अपने आप को समभाव से युक्त रखता है, जो क्षमाशील है, जो करूणावान है, अहंकार रहित है, जो अपने आप में ही सन्तुष्ट रहता है, जिसकी इन्द्रियाँ उसके नियंत्रण में हैं, जिसमें क्लेश या कष्ट से उद्विग्नता नहीं आती, जो पवित्र है, जो उदासीन है, जो निष्काम भाव से परिपूर्ण है, जो मितभाषी ( प्रिय बोलने वाला ) व जो भक्त अपने समस्त कर्मों का अर्पण मुझमें करता है । वही भक्त मुझे प्रिय है ।
Thank you sir
ॐ गुरुदेव!
बहुत ही उत्तम व्याख्या।
आपको हृदय से बहुत _बहुत
आभार प्रेषित करता हूं।
sumbhav ??????
Dr sahab nice explain about bagatas theory.
Prnam Aacharya ji…. Thank you