ग्यारहवां अध्याय ( विश्वरूपदर्शनयोग )

इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने विराट स्वरूप के दर्शन करवाने का वर्णन किया गया है । अभी तक अर्जुन श्रीकृष्ण के साथ अनेक तर्क- वितर्क कर रहा था । उसे श्रीकृष्ण के इस दिव्य शक्ति का अनुमान नहीं था । जब श्रीकृष्ण अपनी महिमा के विषय में अर्जुन को बताते हैं तो अर्जुन उनसे वह सभी विभूतियाँ और शक्तियाँ दिखाने की बात कहता है । जब श्रीकृष्ण अपने विराट स्वरूप के दर्शन अर्जुन को करवाते हैं तो अर्जुन को कुछ दिखाई नहीं देता है । इसके बाद श्रीकृष्ण अर्जुन को दिव्य दृष्टि प्रदान करते हैं । तब कही अर्जुन श्रीकृष्ण के उस विराट स्वरूप को अपनी आँखों से देख पाता है ।

जैसे ही अर्जुन उस विराट स्वरूप को देखता है वैसे ही काँपते हुए व रुँधे हुए गले से श्रीकृष्ण से क्षमा याचना करते हुए कहता है कि मैंने आपकी इस महिमा को न जानने के कारण आपसे मित्रवत व्यवहार करते हुए बहुत बार आपको हे कृष्ण !, हे यादव ! व हे सखा ! जैसे शब्दों का प्रयोग किया है साथ ही बहुत बार आपके साथ उपहास भी किया है । अतः हे कृष्ण ! जाने- अनजाने में हुई गलती के लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ । इस प्रकार श्रीकृष्ण डरे हुए अर्जुन को अपना पहले वाला रूप दिखाते हुए शान्त करते हैं ।

इस पूरे अध्याय में ही श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप का वर्णन किया गया है । जिसमें कुल पच्पन ( 55 ) श्लोकों का उल्लेख किया गया है ।

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  1. सरजी , प्रणाम.
    आपने पिछले बार सब किंताबो कि लिस्ट भेजी थी , क्या फिरसे भेज सकते हो ?

  2. ॐ गुरुदेव!
    बहुत ही उत्तम व संक्षिप्त परिचय।
    आपका हृदय से बहुत _बहुत आभार

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