गीता के अठारह अध्यायों का संक्षिप्त परिचय
गीता का पूरा ज्ञान इसके अठारह अध्यायों में विभक्त है । अलग- अलग अध्याय में अलग- अलग प्रकार के योग की चर्चा की गई है । एक बार हम इसके सभी अध्यायों का नाम जान लेते हैं । उसके बाद प्रत्येक अध्याय के प्रमुख विषयों का संक्षिप्त वर्णन करेंगे ।
अध्याय क्र० – अध्याय का नाम
- अर्जुनविषादयोग
- सांख्ययोग
- कर्मयोग
- ज्ञानकर्मसन्यासयोग
- कर्मसन्यासयोग
- आत्मसंयमयोग
- ज्ञानविज्ञानयोग
- अक्षरब्रह्मयोग
- राजविद्या- राजगुह्ययोग
- विभूतियोग
- विश्वरूपदर्शनयोग
- भक्तियोग
- क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभागयोग
- गुणत्रय विभागयोग
- पुरुषोत्तमयोग
- दैवासुर सम्पद् विभागयोग
- श्रद्धात्रय विभागयोग
- मोक्ष सन्यासयोग
पहला अध्याय ( अर्जुनविषादयोग )
गीता के पहले अध्याय के नाम से ही इस अध्याय की विषय का ज्ञान हो जाता है कि इसमें अर्जुन द्वारा युद्ध के मैदान में अपने स्वजनों ( परिवार, सगे- सम्बन्धी व मित्रगण ) को सामने देखकर मोह व आसक्ति के प्रभाव से विषाद ( उदासी अथवा तनाव की स्थिति ) उत्पन्न हो जाता है । गीता के इस अनुपम ज्ञान के पीछे यही एकमात्र मुख्य कारण है जिसके फलस्वरूप योगीराज श्रीकृष्ण को गीता का उपदेश देना पड़ा । युद्ध के मैदान में यदि अर्जुन के भीतर विषाद उत्पन्न नहीं होता तो आज हम सभी गीता के इस ज्ञान से पूरी तरह वंचित होते । जिस प्रकार सांख्य दर्शन का एक सिद्धान्त है । जो सत्कार्यवाद के नाम से जाना जाता है । सत्कार्यवाद का अर्थ होता है कि प्रत्येक कार्य पहले से ही कारण रूप में विद्यमान होता है ।
उदाहरण स्वरूप :- जिस प्रकार दूध में घी, तिल में तेल व गन्ने में रस पहले से ही विद्यमान होता है । ठीक उसी प्रकार प्रत्येक कार्य पहले से ही कारण रूप में विद्यमान रहता है ।
यहाँ पर गीता के इस पूरे उपदेश का कारण अर्जुन का विषादग्रस्त होना है । जब योगीराज श्रीकृष्ण देखते हैं कि युद्ध का नाम सुनकर जिस अर्जुन की आँखों में चमक आ जाती थी । आज महाभारत के इस युद्ध में उसी अर्जुन के हाथ से उसका गांडीव ( धनुष ) नीचे गिर पड़ा और वह निरुत्साहित होकर रथ में बैठ गया । श्रीकृष्ण के लिए वास्तव में यह चिन्तनीय विषय था । गीता श्रीकृष्ण के इसी चिन्तन का परिणाम है ।
गीता के इस प्रथम अध्याय में कुल सैंतालीस ( 47 ) श्लोकों का वर्णन मिलता है ।
जिनमें निम्न विषयों का प्रमुख रूप से वर्णन किया गया है :- सबसे पहला श्लोक धृतराष्ट्र द्वारा संजय को कहा जाता है । जिसमें वह पूछते हैं कि हे संजय! कुरुक्षेत्र के मैदान में पाण्डव और मेरे पुत्र क्या कर रहे हैं ? जिसके उत्तर में संजय धृतराष्ट्र को युद्ध के मैदान का दृश्य बताने लगते हैं । इसके बाद कौरवों के सेनापति भीष्म पितामह, श्रीकृष्ण व पाण्डवों के द्वारा बजाये गए शंखों के नामों का वर्णन किया गया है । उसके बाद जब अर्जुन श्रीकृष्ण को कहते हैं कि हे कृष्ण! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में ले चलो । मैं देखना चाहता हूँ कि कौन- कौन से योद्धा इस युद्ध में हमारे विरुद्ध लड़ने आए हैं ? जैसे ही अर्जुन का रथ दोनों सेनाओं के मध्य पहुँचता है और अर्जुन अपने ही स्वजनों को अपने विरुद्ध खड़े देखकर मोह के वशीभूत होकर अवसादग्रस्त हो जाता है । विषाद से ग्रस्त अर्जुन युद्ध न करने के लिए श्रीकृष्ण को तर्क देते हुए कहता है कि इस युद्ध के भयंकर परिणाम होंगे जैसे कि कुलनाश और वर्णसंकर दोष आदि ।
Very nice Explains
?
adbhut gyan kai liyai dhanywaad?
Hum aapke aabhari h Guruji.
Bahut hi uttam .
Dr sahab nice explain about arjunvisadyog.
Prnam Aacharya ji ! Dhnyvad
ॐ गुरुदेव!
अद्भुत व्याख्या।
आपको हृदय से आभार।