विशेष :-  आठवें अध्याय का आरम्भ अर्जुन के इन सात प्रश्नों से होता है, जिनका उपदेश पिछले ( 7 वें ) अध्याय में श्रीकृष्ण द्वारा किया गया था । इनका उत्तर देते हुए श्रीकृष्ण अगले श्लोकों में कहते हैं –

 

श्रीभगवानुवाच

 

अर्जुन के प्रश्नों के उत्तर


अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते ।
भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः ।। 3 ।।

अधिभूतं क्षरो भावः पुरुषश्चाधिदैवतम्‌ ।
अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर ।। 4 ।।

अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्‌ ।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ।। 5 ।।

यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्‌ ।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ।। 6 ।।

 

 

व्याख्या :-  भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं – कभी भी नष्ट न होने वाला सबसे उत्कृष्ट अक्षर ही ब्रह्म है, प्राणियों का मूल स्वभाव ही अध्यात्म कहलाता है, जिस कारण से सभी प्राणियों की उत्पत्ति हुई है उसे ही कर्म कहते हैं अर्थात् सभी प्राणियों की उत्पत्ति का मूल आधार यह कर्म ही है ।

 

जो भी इस जगत् में नाशवान है, वह अधिभूत कहलाता है और इस नाशवान जगत् में जो हिरण्यगर्भ नामक अधिष्ठाता पुरुष है, वही अधिदैव है । हे सभी देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन ! इस शरीर में मैं अर्थात् पुरुषोत्तम ( ईश्वर ) ही अधियज्ञ हूँ ।

 

जो मनुष्य अन्तकाल में अर्थात् मृत्यु के समय मेरा स्मरण करते हुए अपने शरीर को त्याग देता है, वह बिना किसी संशय ( सन्देह ) के मुझे ही प्राप्त करता है ।

 

या हे कौन्तेय ! मनुष्य अन्तकाल में जिस- जिस प्रकार के भाव का स्मरण करता हुआ अपने शरीर को त्यागता है, तो उस भाव के प्रभाव से वह मनुष्य उसी भाव को प्राप्त होता है ।

 

 

विशेष :-  ऊपर वर्णित सभी सात प्रश्न व उनके उत्तर परीक्षा व ज्ञान के दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण हैं । अतः विद्यार्थी इन सभी श्लोकों को अच्छी प्रकार से याद करलें ।

 

  • ब्रह्म क्या है? – अक्षर ही ब्रह्म है ।

  • अध्यात्म क्या है? – मनुष्य का मूल स्वभाव ही अध्यात्म है ।

  • कर्म क्या है? – प्राणियों की उत्पत्ति का आधार ही कर्म है ।

  • अधिभूत क्या है? – जो नाशवान है वही अधिभूत है ।

  • अधिदैव कौन है? – हिरण्यगर्भ ही अधिदैव है ।

  • अधियज्ञ कौन है? – पुरुषोत्तम ( ईश्वर ) ही अधियज्ञ है ।

  • वह कैसे रहता है? – अन्तर्यामी रूप में ।

  • पुरुषों द्वारा अन्तकाल में आपको कैसे जाना जाता है? – अन्तकाल में स्मरण करने से ।

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