शुक्ल कृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते ।
एकया यात्यनावृत्ति मन्ययावर्तते पुनः ।। 26 ।।
व्याख्या :- मृत्यु के बाद परलोक जाने हेतु शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष को नित्य व स्थायी मार्ग माना गया है । इनमें से एक मार्ग ( शुक्ल पक्ष ) में गया हुआ योगी अर्थात् शुक्ल पक्ष में मरने वाला योगी कभी वापिस लौट कर नहीं आता और दूसरे मार्ग ( कृष्ण पक्ष ) से गया हुआ योगी वापिस लौट कर आता है अर्थात् उसका पुनर्जन्म होता है ।
नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन ।
तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन ।। 27 ।।
व्याख्या :- हे पार्थ ! इन दोनों मार्गों ( शुक्ल और कृष्ण ) को तत्त्वपूर्वक अर्थात् भली- भाँति जानने के बाद कोई भी साधक अपने मार्ग से नहीं भटकता । इसलिए हे अर्जुन ! तुम सदा योगयुक्त ( समता के भाव से युक्त ) होकर मुझे प्राप्त करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहो ।
वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम् ।
अत्येत तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम् ।। 28 ।।
व्याख्या :- योगी साधक पूर्व में वर्णित सभी तत्त्वों के रहस्यों को अच्छी प्रकार समझकर, वेद, यज्ञ, तप व दान आदि से प्राप्त होने वाले सभी फलों का त्याग करके अथवा उनको छोड़कर अपने परम् स्थान में स्थित हो जाता है अर्थात् परमात्मा में स्थित होकर परमगति को प्राप्त कर लेता है ।
Guru ji nice explain about paramgati.
Thank you sir ????????