पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया ।
यस्यान्तः स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम् ।। 22 ।।
विशेष :- हे पार्थ ! जिसमें सभी प्राणी और यह सम्पूर्ण जगत् समाया हुआ है, अर्थात् जो सभी प्राणियों और जगत् का आधार है, उस परमपुरुष परमात्मा को केवल अनन्य भक्ति भाव से ही प्राप्त किया जा सकता है ।
यत्र काले त्वनावत्तिमावृत्तिं चैव योगिनः ।
प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ ।। 23 ।।
व्याख्या :- हे भरतश्रेष्ठ अर्जुन ! अब मैं तुम्हें उस काल ( समय ) के विषय में बताऊँगा, जिस काल में मृत्यु होने पर योगी का पुनर्जन्म नहीं होता और साथ ही उस काल को भी बताऊँगा जिसमें मृत्यु होने पर योगी का पुनर्जन्म होता है ।
विशेष :- इस श्लोक में योगी श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि हे अर्जुन ! मैं तुम्हें उन दो कालों के विषय में बताऊँगा, जिनमें से एक वह काल है जिसमें योगी मरने के बाद दोबारा जन्म नहीं लेता और इससे दूसरे काल में मरने से योगी को फिर से जन्म लेना पड़ता है ।
पुनर्जन्म से मुक्ति का काल – शुक्ल पक्ष
अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम् ।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः ।। 24 ।।
व्याख्या :- अग्नि, ज्योति ( प्रकाश ) शुक्ल पक्ष और उत्तरायण के छ: महीनों के समय ( दौरान ) मरने वाले ब्रह्मवेत्ता ( ब्रह्म को जानने वाले ) योगी ब्रह्म को प्राप्त होते हैं अर्थात् उनका दोबारा जन्म नहीं होता ।
Thank you sir ????????
ॐ गुरुदेव!
आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।
Nice knowledge guru ji.