पुनर्जन्म अथवा बन्धन का काल – कृष्ण पक्ष
धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण षण्मासा दक्षिणायनम् ।
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते ।। 25 ।।
व्याख्या :- धुआँ, रात्रि ( अँधेरा ), कृष्ण पक्ष और दक्षिणायन के छः महीनों के समय मरने वाले योगी चन्द्रमा के प्रकाश को प्राप्त करके अर्थात् अपने शुभ कर्मों के फल को भोगकर वापिस इसी लोक में जन्म लेते हैं ।
विशेष :- ऊपर वर्णित दोनों ही श्लोक परीक्षा व ज्ञान की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं । इनमें यह बताया गया है कि किस समय पर मरने पर योगी का पुनर्जन्म होता है और किस समय पर नहीं ?
पुनर्जन्म का अर्थ है दोबारा जन्म लेना, लेकिन प्रत्येक योगी का यह लक्ष्य होता है कि वह इस जन्म – मरण के बन्धन से पूरी तरह मुक्त होकर मुक्ति अथवा मोक्ष की प्राप्ति करे ।
यहाँ पर योगी श्रीकृष्ण द्वारा काल अथवा समय को दो भागों में बांटा गया है, जिनमें से एक काल ऐसा है, जिसमें मरने से योगी को पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता अर्थात् वह जन्म- मरण के बन्धन से पूरी तरह मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त कर लेता है और दूसरा काल ऐसा है, जिसमें मरने पर योगी अपने शुभ कर्मों के फलों को भोगकर वापिस इसी मनुष्य लोक में दोबारा जन्म लेता है ।
भारतीय काल गणना में दो अयान ( उत्तरायण व दक्षिणायन ) और दो पक्ष ( शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष ) होते हैं । इनमें से उत्तरायण व शुक्ल पक्ष के समय को अति उत्तम माना जाता है । इनके समय पर मरने पर योगी मुक्ति प्राप्त करता है । इसके विपरीत दक्षिणायन व कृष्ण पक्ष के समय को योगी के लिए कम अच्छा अथवा अमंगलकारी माना गया है । इन दोनों की उपस्थिति ( समय ) में मरने वाले योगी अपने अच्छे कर्मों के फलों को भोगकर वापिस इसी मृत्युलोक में जन्म लेते हैं ।
शुक्ल पक्ष में सूर्य की स्थिति उत्तरायण में होती है अर्थात् शुक्ल पक्ष के समय सूर्य उत्तर में स्थित होता है और कृष्ण पक्ष में सूर्य की स्थिति दक्षिणायन होती है ।
शुक्ल पक्ष को प्रकाशमय और कृष्ण पक्ष को अंधकारमय माना गया है ।
इसका एक उदाहरण हमें महाभारत के युद्ध के समय भी मिलता है, जब भीष्म पितामह मृत्यु शय्या पर लेटे हुए थे, तब कृष्ण पक्ष था और सूर्य दक्षिणायन में स्थित था । इसलिए वह कहते हैं कि शुक्ल पक्ष में जब सूर्य उत्तरायण में आएगा, तभी मैं अपने प्राणों का त्याग करूँगा । क्योंकि उनको यह भली – भाँति पता था कि कृष्ण पक्ष में जब सूर्य के उत्तरायण में स्थित होने पर प्राण त्यागता है, वह सीधे मुक्ति को प्राप्त करता है ।
इसके अतिरिक्त अग्नि व प्रकाश दिन का प्रतिनिधित्व करते हैं और धुआँ व अँधेरा रात का प्रतिनिधित्व करते हैं ।
उत्तरायण के छः महीने व ऋतुएँ :-
- माघ
- फाल्गुन
- चैत्र
- वैशाख
- ज्येष्ठ
- आषाढ़ ।
ऋतुएँ :-
- शिशिर
- वसन्त
- ग्रीष्म ।
दक्षिणायन के छः महीने व ऋतुएँ :-
- श्रावण
- भाद्रपद
- आश्विन
- कार्तिक
- आग्रहायण
- पौष ।
ऋतुएँ :-
- वर्षा
- शरद
- हेमन्त ।
कुछ परीक्षा उपयोगी प्रश्न :-
- किस पक्ष व अयान में मरने पर योगी का पुनर्जन्म नहीं होता अथवा योगी को मुक्ति मिलती है ? जिसका उत्तर है – शुक्ल पक्ष व उत्तरायण में ।
- किस पक्ष व अयान में मृत्यु होने पर योगी को पुनर्जन्म लेना पड़ता है ? उत्तर है – कृष्ण पक्ष व दक्षिणायन में ।
- कृष्ण पक्ष के समय सूर्य की क्या स्थिति होती है ? उत्तर है – दक्षिणायन में ।
- शुक्ल पक्ष में सूर्य कहा स्थित होता है ? उत्तर है- उत्तरायण में ।
- कृष्ण पक्ष में मरने वाले योगी कहाँ जाते हैं ? उत्तर है – चन्द्रलोक में ।
- उत्तरायण व दक्षिणायन कितने- कितने महीनों के होते हैं ? उत्तर है – छः- छः महीनों के ।
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Very very very thank you sir ????????