मोक्ष प्राप्ति

 

मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम्‌ ।
नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः ।। 15 ।।

 

 

व्याख्या :-  इस प्रकार परम सिद्धि की प्राप्ति करने वाले महात्मा मुझे प्राप्त करके, दुःखों के घर व अक्षणभंगुर अर्थात् ( जिसका अन्त निश्चित है ) ऐसे पुनर्जन्म से सदा के लिए मुक्त होकर, परमगति ( मोक्ष ) को प्राप्त करते हैं ।

 

 

 

पुनर्जन्म से मुक्ति

 

आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन ।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ।। 16 ।।

 

 

व्याख्या :-  हे अर्जुन ! ब्रह्मलोक से लेकर स्वर्ग तक जितने भी लोक हैं, वें सभी पुनरावर्ती लोक हैं अर्थात् वें सभी ऐसे लोक हैं जहाँ पर एक निश्चित समय रहने के बाद मनुष्य को वापिस इस मृत्युलोक ( पृथ्वी ) पर आना ही पड़ता है । लेकिन हे कौन्तेय !  जो मुझे प्राप्त कर लेता है, उसका यह पुनर्जन्म का बन्धन पूरी तरह से छूट जाता है अर्थात् मुझे पाने के बाद उस मनुष्य को दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता ।

 

 

  • विशेष :- इस श्लोक के सम्बन्ध में पूछा जा सकता है कि ब्रह्मलोक से लेकर स्वर्ग लोक तक के लोक किस प्रकार के होते हैं ? जिसका उत्तर है – पुनरावर्ती वाले लोक ।
  • किसको प्राप्त करने के बाद मनुष्य पुनर्जन्म के बन्धन से पूरी तरह से मुक्त हो जाता है ? उत्तर है – भगवान ( ब्रह्म ) को ।

 

 

ब्रह्मा के दिन और रात्रि की अवधि

 

सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदुः ।
रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जनाः ।। 17 ।।

 

 

व्याख्या :- ब्रह्मा का एक दिन एक हजार चतुर्युग के बराबर होता है और इसके बराबर ही उसकी एक रात होती है । जो इस अहोरात्र के मूल अथवा तत्त्व को जानता है, वही विद्वान है ।

 

 

विशेष :-  एक चतुर्युग चार युगों से मिलकर बनता है, जिसमें, त्रेता, द्वापर व कलियुग शामिल हैं और ऐसे एक हजार महायुग ब्रह्मा के एक दिन के बराबर होते हैं ।

 

  • परीक्षा में पूछा जा सकता है कि चतुर्युग में कौन- कौन से चार युग होते हैं ? जिसका उत्तर है – सतयुग, त्रेता, द्वापर व कलियुग ।

ब्रह्मा का एक दिन अथवा एक रात्रि कितने युगों के बराबर होती है ? जिसका उत्तर है – एक हजार महायुगों के बराबर ।

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