योग की परिभाषा

 

तं विद्याद् दुःखसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम् ।
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा ।। 23 ।।

 

 

व्याख्या :-  दुःख के संयोग से रहित अर्थात् सुख स्वरूप अवस्था को ही योग कहा जाता  है । योगी साधक को इस योग का अभ्यास उत्साहित मन व पूर्ण निश्चय अथवा मनोयोग के साथ करना चाहिए ।

 

 

 

विशेष :-  गीता के छटे अध्याय के इस श्लोक ( 23 ) को योग की परिभाषा के रूप में भी प्रयोग किया जाता है । इसे काफी महत्वपूर्ण श्लोक माना जाता है । इसमें बताया गया है कि दुःख के संयोग से रहित अर्थात् सुख से परिपूर्ण अवस्था को ही योग कहा जाता है । जहाँ पर दुःख पूर्ण रूप से नष्ट हो जाता है, वहीं पर पूर्ण सुख की उत्पत्ति होती है और इसी अवस्था को योग कहा गया है ।

 

 

जो व्यक्ति यह चाहता है कि उसे पूर्ण सुख की प्राप्ति हो जाए, उसे ध्यानयोग का अभ्यास करना चाहिए, क्योंकि ध्यानयोग के फल को बताते हुए कहा है कि दुःख के संयोग से रहित अवस्था को ही योग कहा जाता है । इसलिए उस दुःख के संयोग से रहित अर्थात् पूर्ण सुख की अवस्था को प्राप्त करने के लिए ध्यानयोग का अभ्यास करना चाहिए ।

 

परीक्षा में इस श्लोक को लिखकर यह पूछा जा सकता है कि यह किस अध्याय का कौन सा श्लोक है ? जिसका उत्तर है – छटे अध्याय का 23 वाँ ।

 

 

 

सङ्‍कल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषतः ।
मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्ततः ।। 24 ।।

शनैः शनैरुपरमेद्‍बुद्धया धृतिगृहीतया ।
आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किंचिदपि चिन्तयेत्‌ ।। 25 ।।

यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्‌ ।
ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्‌ ।। 26 ।।

 

 

 

व्याख्या :-  संकल्प के प्रभाव से उत्पन्न होने वाली सभी कामनाओं को पूरी तरह से नष्ट करके, मन के द्वारा इन्द्रियों को चारों ओर ( सभी तरफ ) से नियंत्रित करे ।

 

इस प्रकार धैर्यपूर्वक बुद्धि से धीरे – धीरे मन में विषयों के प्रति विरक्ति ( अलगाव या उदासीनता ) का भाव पैदा हो जाएगा । जब मन सभी विषयों से विरक्त हो जाए, तब मन को अपनी आत्मा में स्थित करते हुए, किसी अन्य विचार का चिन्तन भी न करे ।

 

 

हमारा मन स्वभाव से ही चंचल है, इसलिए यह चंचल मन जहाँ- जहाँ भी जाए अर्थात् जब मन बाह्य विषयों का चिन्तन करे, तभी वहाँ- वहाँ से उसका नियमन अथवा निरोध करके उसे वापिस अपनी आत्मा के अधिकार में क्षेत्र में लाएं ।

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  1. ओम् गुरुदेव!
    इसका तात्पर्य यह हुआ कि इस श्लोक को भी योग की परिभाषा के रूप में प्रयुक्त कर सकते हैं।

  2. ऊॅ सर ! अर्थात योग की परिभाषा में इस व्याख्या को सामिल किया जा सकता है ।

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