श्रीभगवानुवाच

 

मन को नियंत्रण में करने के उपाय

 

अभ्यास और वैराग्य

 

असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्‌ ।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ।। 35 ।।

 

 

व्याख्या :-  भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं – हे महाबाहो ! निःसन्देह इस चंचल मन को नियंत्रण ( वश ) में करना अत्यन्त कठिन कार्य है, लेकिन हे कौन्तेय ! अभ्यास और वैराग्य द्वारा इसे वश में किया जा सकता है ।

 

 

विशेष :-  इस श्लोक में मन को नियंत्रण में करने के लिए अभ्यास और वैराग्य नामक दो उपाय बताए गए हैं । पहले हम अभ्यास और वैराग्य के अर्थ को समझ लेते हैं –

 

अभ्यास :- किसी भी कार्य को करने के लिए किए जाने वाले प्रयास या कोशिश को अभ्यास कहते हैं, बार – बार किए गए प्रयत्नों अथवा कोशिशों अत्यन्त कठिन दिखाई देने वाले कार्य भी सुगमता से पूरे हो जाते हैं ।

 

अभ्यास के विषय में प्रसिद्ध दोहा :-

 

करत – करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान ।

रसरी आवत- जात ते सिल पर परत निसान ।।

अर्थात् बार – बार प्रयत्न करते रहने से असमर्थ मनुष्य भी समर्थ बन जाता है अर्थात् कमजोर भी बलवान हो जाता है, जिस प्रकार कुँए के पत्थर पर रस्सी के बार – बार घिसने से उस पत्थर के ऊपर निशान  पड़ जाते हैं । जबकि पत्थर बहुत मजबूत  होता है और रस्सी बहुत नाजुक होती है, लेकिन बार – बार घिसने से वह पत्थर पर भी निशान बना देती है । इसलिए बार – बार के प्रयास या कोशिश से साधक असाध्य दिखने वाले लक्ष्य को भी साध्य बना लेता है ।

 

वैराग्य  :- वैराग्य का अर्थ है राग रहित  होना, जब मनुष्य की किसी भी पदार्थ या वस्तु में अत्यधिक आसक्ति ( लगाव ) हो जाती है, तब वह राग बन जाता है । इसके विपरीत जब मनुष्य की किसी भी विषय – वस्तु में आसक्ति ( रुचि ) नही रहती, तब उसे विराग हो जाता है । जैसे  – बहुत सारे व्यक्तियों की इच्छा रहती है कि उनके पास बड़ी कार, बंगला, या बहुत सारा धन हो, लेकिन वहीं कुछ व्यक्तियों को इन सभी भौतिक वस्तुओं में किसी भी प्रकार की रुचि नही होती । इस प्रकार भौतिक वस्तुओं को पाने की इच्छा का न होना विराग होता है ।  विराग के इस भाव को ही वैराग्य कहते हैं ।

 

 

यह श्लोक भी परीक्षा व व्यवहारिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है । जो भी अपने मन को नियंत्रण में करना चाहते हैं, उन्हें नियमित रूप से अभ्यास और वैराग्य का अभ्यास करना चाहिए ।

 

परीक्षा में पूछा जा सकता है कि गीता में मन को नियंत्रण अथवा वश में करने के लिए कौन से उपाय बताए हैं ? जिसका उत्तर है – अभ्यास और वैराग्य ।

 

 

 

असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः ।
वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः ।। 36 ।।

 

 

व्याख्या :-  मेरे मतानुसार जिसका अंतःकरण ( मन, बुद्धि, अहंकार व चित्त ) स्वयं के नियंत्रण में नहीं है, उसके लिए इस योग को प्राप्त करना असम्भव है, लेकिन जिस साधक का अंतःकरण उसके नियंत्रण में है, वह आसानी से इस योग में सिद्धि प्राप्त कर लेता है ।

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