अर्जुन उवाच
अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः ।
कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति ।। 4 ।।
व्याख्या :- अब अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा – हे कृष्ण आपका जन्म तो अभी का ( कुछ वर्ष पूर्व का ही ) है और विवस्वान ( सूर्य ) का जन्म तो अत्यंत प्राचीन अर्थात् बहुत पहले हो चुका, अब इस परिस्थिति में मैं यह कैसे समझू अथवा जानूँ कि आपने ही इस पुरातन योग को पहले विवस्वान को बताया था ?
श्रीभगवानुवाच
बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन ।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप ।। 5 ।।
व्याख्या :- भगवान श्रीकृष्ण उत्तर देते हुए कहते हैं कि हे परन्तप अर्जुन ! मेरे और तुम्हारे बहुत सारे जन्म हो चुके हैं अर्थात् इस जन्म से पहले भी हम दोनों के अनेक जन्म हो चुके हैं । मैं उन सभी को जानता हूँ, लेकिन तुम उनके ( पूर्व जन्मों के ) विषय में नहीं जानते हो ।
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन् ।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ।। 6 ।।
व्याख्या :- अजन्मा ( जिसका कभी जन्म नहीं होता ), अविनाशी ( जिसका कभी नाश नहीं होता ) और सभी प्राणियों का ईश्वर होते हुए भी मैं अपनी ही प्रकृति को अपने अधीन ( नियंत्रण ) करके, अपनी योगमाया से ही जन्म लेता हूँ ।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।। 7 ।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।। 8 ।।
व्याख्या :- हे भारत ! ( अर्जुन ) जब- जब धर्म ( कर्तव्य कर्म ) की हानि और अधर्म ( अकर्तव्य अथवा निकृष्ट कर्म ) की वृद्धि ( बढ़ोतरी ) होती है, तब- तब मैं प्रकट होता हूँ अर्थात् जन्म लेता हूँ ।
साधु अथवा सज्जनों की रक्षा और पापी अथवा दुष्टों के विनाश करने के लिए तथा धर्म की पुनः स्थापना करने के लिए मैं युग- युग ( अलग- अलग समय ) में जन्म लेता रहता हूँ ।
विशेष :- यह दोनों ही गीता के बहुत प्रसिद्ध श्लोक हैं, आप सभी ने टीवी पर महाभारत देखते हुए इनको अवश्य सुना होगा । इनका भाव यही है कि जब – जब कतर्व्य कर्म की हानि और पाप कर्म में बढ़ोतरी होती है, तब – तब सज्जनों की रक्षा और पापियों के नाश तथा धर्म को पुनः स्थापित करने के लिए मैं इस पृथ्वी पर जन्म लेता हूँ ।
Very nice sir.thankyou
Dr sahab nice explain about bagwan krisna birth condition.
ॐ गुरुदेव!
आपका बहुत बहुत आभार।