चार वर्ण
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः ।
तस्य कर्तारमपि मां विद्धयकर्तारमव्ययम् ।। 13 ।।
व्याख्या :- गुण व कर्म के आधार पर मैंने ही इस सृष्टि को चार वर्णों ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र ) की रचना की है । इस प्रकार तुम मुझे इस सृष्टि का कर्ता ( रचनाकार ) होने पर भी अकर्ता ही समझो ।
विशेष :- इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह जो चार प्रकार की वर्ण व्यवस्था है, यह मेरे द्वारा ही बनाई गई है । इस वर्ण व्यवस्था को इस प्रकार बनाया गया है- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र ।
आज वर्तमान परिप्रेक्ष्य को देखते हुए इस वर्ण व्यवस्था पर विस्तार से चर्चा करने की आवश्यकता है । इस वर्ण व्यवस्था को लेकर बहुत सारी भ्रांतियाँ समाज में फैली हुई हैं, जिनका निराकरण करना परमावश्यक है ।
न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा ।
इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते ।। 14 ।।
व्याख्या :- मुझे किसी भी प्रकार के कर्मफल में आसक्ति नहीं है, इसलिए मैं कभी भी कर्मबन्धन में नहीं बँधता । जो मुझे इस रूप में जानता है और इसी प्रकार का व्यवहार करता है अर्थात् कर्मफल में आसक्ति नहीं रखता है, वह भी मेरी तरह ही कभी भी कर्मबन्धन में नहीं बँधता ।
विशेष :- कर्मफल में आसक्ति होने पर ही कर्म बन्धन का कारण बनते हैं । इसीलिए यहाँ भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मेरी कर्मफल में किसी तरह की कोई आसक्ति नहीं है, तभी यह कर्म मुझे बन्धन में नहीं बाँध पाते । अतः मनुष्य को कर्मबन्धन से मुक्त होने के लिए कर्मफल में आसक्ति का त्याग करना अनिवार्य है ।
एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म पूर्वैरपि मुमुक्षुभिः ।
कुरु कर्मैव तस्मात्वं पूर्वैः पूर्वतरं कृतम् ।। 15 ।।
व्याख्या :- इस कर्तव्य कर्म अथवा निष्काम कर्म को जानकर ही पूर्व समय में हुए दिव्य पुरुषों ने इसी विधि से कर्म ( आसक्ति रहित ) किया था । अब तुम भी अपने पूर्वजों ( दिव्य पुरुषों ) के पदचिन्हों ( उनके द्वारा दिखाए मार्ग ) का अनुसरण करते हुए ही कर्म करो ।
किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः ।
तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ।। 16 ।।
व्याख्या :- कर्म क्या है ? अकर्म क्या है ? इसे जानने के लिए बड़े – बड़े विद्वान भी कई बार भ्रमित हो जाते हैं । अतः मैं तुम्हें वह कर्म सिद्धान्त बताऊँगा, जिसको जानकर अथवा अपनाकर तुम इस अशुभ कर्मबन्धन से मुक्त हो जाओगे ।
Thank you sir
सर यदि हो सके तो इसे और विस्तार दे ?????
Guru ji nice explain to avoid karma benefits.