तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ ।
पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम् ।। 41 ।।
व्याख्या :- इसलिए हे भरतश्रेष्ठ अर्जुन ! सबसे पहले तुम अपनी इन्द्रियों को अपने वश में करो और उसके बाद तुम ज्ञान – विज्ञान को नष्ट करने वाले इस कामरूपी पापी को भी नष्ट कर डालो ।
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः ।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ।। 42 ।।
व्याख्या :- हमारे स्थूल शरीर से श्रेष्ठ अथवा शक्तिशाली हमारी इन्द्रियाँ हैं, इन्द्रियों से श्रेष्ठ अथवा शक्तिशाली हमारा मन है, मन से श्रेष्ठ अथवा शक्तिशाली हमारी बुद्धि है और उस बुद्धि से भी श्रेष्ठ अथवा शक्तिशाली हमारी आत्मा है ।
विशेष :- यह श्लोक परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी साबित हो सकता है । इसके सम्बन्ध में कई प्रश्पूछे जा सकते हैं, जैसे कि स्थूल शरीर से श्रेष्ठ किसे कहा गया है ? उत्तर है इन्द्रियों को । मन को किससे श्रेष्ठ माना गया है ? उत्तर है इन्द्रियों से । मन से उत्तम अर्थात् शक्तिशाली किसे कहा गया है ? उत्तर है बुद्धि को । बुद्धि से भी श्रेष्ठ अथवा सबसे उत्तम किसे माना गया है ? उत्तर है आत्मा को ।
एवं बुद्धेः परं बुद्धवा संस्तभ्यात्मानमात्मना ।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् ।। 43 ।।
व्याख्या :- हे महाबाहो अर्जुन ! इस प्रकार तुम बुद्धि से भी श्रेष्ठ और शक्तिशाली उस आत्मा को अच्छे से समझकर, उस कामरूपी दुर्जय ( जिसपर विजय प्राप्त करना कठिन हो ) शत्रु को मार डालो ।
Guru ji nice explain how attma is great of all.
Prnam Aacharya ji… Thank you