तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत ।
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् ।। 62 ।।
व्याख्या :- इसलिए हे भारत ! तुम अपने सभी भावों को परमात्मा में समर्पित करके उनकी शरण में जाओ, क्योंकि परमात्मा के आशीर्वाद रूपी प्रसाद से ही तुम्हें परम शान्ति व स्थान की स्थायी रूप से प्राप्ति होगी ।
इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया ।
विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु ।। 63 ।।
व्याख्या :- इस प्रकार ज्ञान के गुप्त से भी गुप्त रहस्य को मैंने तुम्हें बताया है । अब तुम इस परम रहस्य वाले ज्ञान के विषय में पूर्ण रूप से सोच- विचार करो और उसके बाद जैसा तुम्हें सही लगे, वैसे ही करो ।
सर्वगुह्यतमं भूतः श्रृणु मे परमं वचः ।
इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् ।। 64 ।।
व्याख्या :- ज्ञानों में सबसे गोपनीय अथवा गुप्त ज्ञान को तुम मेरे उत्तम वचन से सुनो । तुम मेरे अत्यन्त प्रिय मित्र हो, इसलिए मैं तुम्हें तुम्हारे भले की ही बात ही कहूँगा ।