सांख्य दर्शन के गुण = सत्त्व, रज व तम
ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदतः ।
प्रोच्यते गुणसङ्ख्याने यथावच्छ्णु तान्यपि ।। 19 ।।
व्याख्या :- गुणों ( सत्त्व, रज व तम ) की संख्या पर आधारित सांख्यशास्त्र ( सांख्य दर्शन ) के अनुसार ज्ञान, कर्म और कर्ता सात्त्विक, राजसिक व तामसिक गुणों से प्रेरित होने के कारण तीन प्रकार के होते हैं । अब तुम उनका यथावत् ( ज्यों का त्यों ) ज्ञान सुनो ।
विशेष :-
- सांख्य दर्शन के गुणों के आधार पर ज्ञान, कर्म व कर्ता के कितने भेद बताए गए हैं ? उत्तर है – तीन ( 3 )
सात्त्विक ज्ञान
सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते ।
अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्त्विकम् ।। 20 ।।
व्याख्या :- मनुष्य जिस ज्ञान द्वारा सभी अलग – अलग प्राणियों में एक ही भाव में स्थित उस अविनाशी और अविभक्त परमात्मा को देखता है, तुम उसे सात्त्विक ज्ञान जानो ।
राजसिक ज्ञान
पृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं नानाभावान्पृथग्विधान् ।
वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तज्ज्ञानं विद्धि राजसम् ।। 21 ।।
व्याख्या :- जिस ज्ञान के द्वारा सभी प्राणियों में भिन्नताओं के कारण उनमें अलग- अलग प्रकार के अनेक भाव अलग- अलग रूप में दिखाई देते हैं, उसे राजसिक ज्ञान समझो ।
तामसिक ज्ञान
यत्तु कृत्स्नवदेकस्मिन्कार्ये सक्तमहैतुकम् ।
अतत्त्वार्थवदल्पंच तत्तामसमुदाहृतम् ।। 22 ।।
व्याख्या :- परन्तु जिस ज्ञान द्वारा मनुष्य एक ही कार्य में आसक्त होकर बिना किसी कारण का पता लगाए उसे ही सबकुछ मानने लगता है, तो वह उस तत्त्व को उसके वास्तविक ज्ञान से विपरीत समझ बैठता है । ऐसा अल्प अथवा तुच्छ ज्ञान तामसिक ज्ञान कहलाता है ।