शरीरवाङ्‍मनोभिर्यत्कर्म प्रारभते नरः ।

न्याय्यं वा विपरीतं वा पञ्चैते तस्य हेतवः ।। 15 ।।

 

 

व्याख्या :-  मनुष्य अपने मन, वचन व शरीर से जो भी कर्म करता है, फिर चाहे वह न्याय संगत ( शास्त्रों द्वारा उपदेशित ) हों अथवा न्याय विरोधी ( शास्त्रों द्वारा वर्जित ) उन सभी कर्मों के यही पाँच हेतु अर्थात् कारण हैं ।

 

 

 

विशेष :-

  • मनुष्यों द्वारा किए जाने वाले सभी शारीरिक, मानसिक व वाचिक कार्यों का हेतु किसे कहा गया है ? उत्तर है – सांख्य दर्शन के निम्न पाँच कारणों को – शरीर, जीव, इन्द्रियाँ, उनके कर्म ( इन्द्रियों के ) व दैव ( संस्कार ) को ।
  • कोई भी मनुष्य कर्मों का तीन प्रकार से क्रियान्वयन कर सकता है- मन, वचन व कर्म ( शरीर ) से । इनको ही “मनसा वाचा कर्मणा” का सिद्धान्त कहते हैं ।

 

 

तत्रैवं सति कर्तारमात्मानं केवलं तु यः ।

पश्यत्यकृतबुद्धित्वान्न स पश्यति दुर्मतिः ।। 16 ।।

 

 

व्याख्या :-  जो व्यक्ति अपनी दुष्ट अथवा कुटिल बुद्धि द्वारा ऊपर वर्णित वास्तविक स्थिति को सही न मानकर शुद्ध आत्मा को ही इन सभी कर्मों का कर्ता मानते हैं, वह वास्तव में कुछ भी नहीं जानते हैं ।

 

 

 

यस्य नाहङ्‍कृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते ।

हत्वापि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते ।। 17 ।।

 

 

व्याख्या :-  जो मनुष्य “मैं कर्ता नहीं हूँ” का दृढ़ भाव रखता है और जिसकी बुद्धि सभी सांसारिक पदार्थों से अलिप्त अथवा आसक्ति रहित हो गई है, वह मनुष्य चाहे सारे संसार का वध कर डाले, फिर भी वह इस पाप दोष के बन्धन से मुक्त रहता है ।

 

 

 

कर्म चोदना ( कर्म की प्रेरणा ) = ज्ञान, ज्ञेय और ज्ञाता

कर्म संग्रह = कर्ता, कर्म व करण

 

ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता त्रिविधा कर्मचोदना ।

करणं कर्म कर्तेति त्रिविधः कर्मसङ्ग्रहः ।। 18 ।।

 

 

 

व्याख्या :-  कर्म चोदना ( कर्म की प्रेरणा ) तीन प्रकार की होती है – ज्ञान, ज्ञाता और ज्ञेय तथा कर्म संग्रह भी तीन प्रकार का ही होता है – कर्ता, कर्म और करण ।

 

 

 

विशेष :-

  • गीता के अनुसार कर्म की प्रेरणा कितने प्रकार की बताई गई है ? उत्तर है – तीन प्रकार की ( ज्ञान, ज्ञाता और ज्ञेय )
  • कर्म चोदना अथवा कर्म की प्रेरणा का वर्णन गीता के किस अध्याय में किया गया है ? उत्तर है – गीता के अठारहवें अध्याय में ।
  • कर्म संग्रह कितने प्रकार का बताया गया है ? उत्तर है – तीन प्रकार का ( कर्ता, कर्म और करण ) ।
  • ज्ञान = किसी भी वस्तु अथवा पदार्थ के वास्तविक स्वरूप का बोध या जानकारी होना ।
  • ज्ञाता = जिसको ज्ञान अथवा जानकारी प्राप्त होती है अर्थात् पुरुष ।
  • ज्ञेय = जिसे जाना जा सके अथवा जो जानने योग्य हो ।
  • कर्ता = कर्म करने वाला ।
  • करण = जिसे किया जाता है ।

कर्म = कार्य अथवा क्रिया ।

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