उत्तम पुरुष = ईश्वर ( परमात्मा )
उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः ।
यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः ।। 17 ।।
व्याख्या :- इन दोनों पुरुषों से भिन्न उस उत्तम पुरुष को परमात्मा कहते हैं, जो तीनों लोकों में प्रवेश करके उनका पोषण करता है, उसी अविनाशी पुरुष को ईश्वर कहते हैं ।
पुरुषोत्तम ( ईश्वर ) नाम से प्रसिद्ध
यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तमः ।
अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः ।। 18 ।।
व्याख्या :- मैं क्षर ( शरीर ) से भी अतीत ( पुराना ) और अक्षर ( आत्मा ) से भी उत्तम ( श्रेष्ठ ) हूँ, इसलिए इस लोक और वेदों में मैं पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हूँ ।
विशेष :-
- ईश्वर इस लोक और वेदों में किस नाम से प्रसिद्ध हैं ? उत्तर है – पुरुषोत्तम नाम से ।
यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम् ।
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ।। 19 ।।
इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयानघ ।
एतद्बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्कृतकृत्यश्च भारत ।। 20 ।।
व्याख्या :- हे भारत ! ( अर्जुन ) जो भी ज्ञानी पुरुष मुझे पुरुषोत्तम रूप में जानता है, वह सर्वज्ञ ( सबकुछ जानने वाला ) सभी प्रकार से मुझे ही भजता है अर्थात् वह सबकुछ जानने वाला सभी प्रकार से मेरा ही भजन करता है ।
हे निष्पाप भारत ! ( अर्जुन ) इस प्रकार यह गुप्त से भी गुप्त रहस्यों वाले अति गोपनीय शास्त्र का वर्णन मेरे द्वारा किया गया है । इस ज्ञान को तत्त्वपूर्वक जानने से मनुष्य बुद्धिमान और कृतार्थ ( प्रसन्न अथवा सन्तुष्ट ) हो जाता है ।
Thanku sir ????????