गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा ।
पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः ।। 13 ।।
व्याख्या :- मैं ही इस पृथ्वी में प्रवेश करके अपने सामर्थ्य से सभी प्राणियों को धारण करता हूँ और मैं ही चन्द्रमा बनकर सभी फूलों और औषधियों में रस का संचार करके उनका पोषण करता हूँ ।
अन्न का पाचन
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः ।
प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ।। 14 ।।
व्याख्या :- मैं ही समस्त प्राणियों के शरीर में वैश्वानर रूपी जठराग्नि के रूप में स्थित होकर, प्राण और अपान के साथ मिलकर चार प्रकार के अन्न ( भोजन ) को पचाता हूँ ।
विशेष :- इस श्लोक में निम्न चार प्रकार के अन्न की चर्चा की गई है – भक्ष्य, चूष्य, लेह्य और पेय ।
सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टोमत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च ।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्योवेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् ।। 15 ।।
व्याख्या :- मैं ही समस्त प्राणियों के हृदय में निवास करता हूँ, स्मृति ( याददाश्त ), ज्ञान और अपोहन ( सभी शंकाओं का निराकरण ) भी मुझसे ही होता है और समस्त वेदों द्वारा जानने योग्य भी मैं ही हूँ तथा मैं ही वेदान्त कर्ता ( वेदान्त का रचयिता ) हूँ और मैं ही वेद को जानने वाला हूँ ।
क्षर ( नाशवान ) = शरीर अक्षर ( अनश्वर ) = जीवात्मा
द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च ।
क्षर: सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते ।। 16 ।।
व्याख्या :- इस लोक अर्थात् संसार में क्षर व अक्षर दो प्रकार के पुरुष हैं, इनमें से नाशवान ( नष्ट होने वाले शरीर ) को क्षर और कूटस्थ ( नष्ट न होने वाले अनश्वर जीवात्मा ) को अक्षर कहा जाता है ।
विशेष :-
- इस लोक में कितने प्रकार के पुरूष कहे गए हैं ? उत्तर है – दो प्रकार के ( क्षर व अक्षर )
- अविनाशी अथवा अनश्वर पुरुष किसे कहते हैं ? उत्तर है अक्षर को
- नाशवान पुरुष को क्या कहते हैं ? उत्तर है – क्षर ।
- शरीर क्या है ? उत्तर है – क्षर
अक्षर किसे कहा गया है ? उत्तर है- जीवात्मा अथवा आत्मा को ।
Thanku so much sir ????????
Guru Ji nice explain.
Very best explain sir ????????
Hare Krishna , Thank you sir
Prnam Aacharya ji nicely explained. thank you