ध्यानयोग, सांख्ययोग व कर्मयोग द्वारा आत्मा का प्रत्यक्षीकरण
ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना ।
अन्ये साङ्ख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे ।। 24 ।।
व्याख्या :- कुछ लोग ध्यानयोग द्वारा अपने आप में ही अपनी आत्मा को देखते हैं, तो कुछ अन्य लोग सांख्ययोग और कर्मयोग द्वारा इस आत्मतत्त्व को देखते हैं ।
विशेष :- इस श्लोक में ध्यानयोग, सांख्ययोग व कर्मयोग नामक तीन मुख्य योग साधना पद्धतियों का वर्णन किया गया है ।
अन्ये त्वेवमजानन्तः श्रुत्वान्येभ्य उपासते ।
तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः ।। 25 ।।
व्याख्या :- परन्तु कुछ ऐसे लोग भी होते हैं, जो इस आत्मतत्त्व को उपर्युक्त योग साधनाओं द्वारा नहीं जान पाते हैं । वे दूसरों ( जिनको इस आत्मतत्त्व का ज्ञान है ) के द्वारा इसके विषय में सुनकर इसकी उपासना करते हैं और इस प्रकार भक्तिभाव से युक्त वह पुरुष भी मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेते हैं ।
यावत्सञ्जायते किञ्चित्सत्त्वं स्थावरजङ्गमम् ।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्तद्विद्धि भरतर्षभ ।। 26 ।।
व्याख्या :- हे भरत श्रेष्ठ अर्जुन ! तुम इस बात को अपने ध्यान में रखों कि जो भी स्थावर अर्थात् स्थिर और जंगम अर्थात् चलायमान पदार्थ हैं वह सभी क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के संयोग से ही उत्पन्न होते हैं ।
सच्चा दृष्टा
समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम् ।
विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति ।। 27 ।।
व्याख्या :- जिस मनुष्य ने विनाश को प्राप्त होने वाले सभी प्राणियों में उस अविनाशी परमेश्वर को समान रूप से स्थित हुआ देख लिया है, वही सच्चा दृष्टा होता है ।
Best explain sir ????????
Nice guru ji
ॐ गुरुदेव!
अति सुंदर व्याख्या।