ज्ञेय क्या है ? ( जानने योग्य कौन है ? )

 

ज्ञेयं यत्तत्वप्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वामृतमश्नुते ।

अनादिमत्परं ब्रह्म न सत्तन्नासदुच्यते ।। 12 ।।

 

 

व्याख्या :-  जो जानने योग्य परब्रह्मा है, जिसको जानने से मनुष्य को उस परमानन्दस्वरूप मोक्ष की प्राप्ति होती है, अब मैं सत् और असत् से परे उस अनादि स्वरूप के विषय में तुम्हें बताऊँगा ।

 

 

ज्ञेय ( परमात्मा ) का स्वरूप

 

सर्वतः पाणिपादं तत्सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम्‌ ।

सर्वतः श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति ।। 13 ।।

 

 

व्याख्या :-  जिसके हाथ- पैर, आँखें, सिर, मुख और कान चारों ओर हैं, जो इस सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त अथवा स्थित है ।

 

 

 

सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम्‌ ।

असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च ।। 14 ।।

 

 

व्याख्या :-  सभी इन्द्रियों का आभास होते हुए अथवा सभी इन्द्रियों का स्वामी होते हुए भी जो सभी इन्द्रियों के विषयों से रहित है, किसी के भी प्रति कोई आसक्ति न होने पर भी जो सबका पालन- पोषण करता है और जो निर्गुण होने के बावजूद भी सभी गुणों का भोक्ता ( सभी गुणों को भोगने वाला ) है ।

 

 

 

बहिरन्तश्च भूतानामचरं चरमेव च ।

सूक्ष्मत्वात्तदविज्ञयं दूरस्थं चान्तिके च तत्‌ ।। 15 ।।

 

 

व्याख्या :-  जो सभी प्राणियों के अन्दर भी है और बाहर भी, जो स्थिर भी है और गतिशील भी, अति सूक्ष्म होने की वजह से उसे जाना नहीं जा सकता । वह सभी प्राणियों से दूर भी है और समीप ( नजदीक ) भी ।

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