ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ ।
माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शंखौ प्रदध्मतु: ।। 14 ।।

 

  

व्याख्या :-  इसके बाद सफेद घोड़ों से जुते हुए ( सुज्जित ) रथ में बैठे श्रीकृष्ण और अर्जुन ने भी कौरवों की ओर से बजाये गए शंखों का उत्तर देते हुए ( युद्ध हेतु ) अपने- अपने दिव्य शंख बजाये ।

 

 

विशेष :-  महाभारत के युद्ध में सबसे आकर्षक रथ अर्जुन का था । जिसमें सफेद घोड़े बन्धे थे । इस युद्ध में स्वयं योगी श्रीकृष्ण अर्जुन के रथ के सारथी बने हुए थे । क्योंकि उन्होंने इस युद्ध में अस्त्र- शस्त्र ( हथियार ) न उठाने की प्रतिज्ञा की हुई थी । तभी वह किसी भी सेना की ओर से नहीं लड़े ।

 

 

पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः ।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशंख भीमकर्मा वृकोदर ।। 15 ।।

अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः ।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥ 16 ।।

 

 

व्याख्या :-  श्रीकृष्ण ने पांचजन्य, अर्जुन ने देवदत्त और भयंकर कर्म ( कठिन से कठिन कार्य ) करने वाले भीम ने पौण्ड्र नामक शंख बजाया ।

कुन्ती के पुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय, नकुल ने सुघोष व सहदेव ने मणिपुष्पक नामक शंख बजाये ।

 

 

विशेष :-  अब युद्ध के लिए तैयार होने के संकेत रूप में पाण्डवों की ओर से शंखनाद किया गया ।

 

परीक्षा की दृष्टि से :-  पाण्डवों की सेना की ओर से सबसे पहला शंख किसने बजाया ? उत्तर है श्रीकृष्ण ने । पांचजन्य नामक शंख किसने बजाया था ? उत्तर है श्रीकृष्ण ने । अर्जुन ने किस नाम का शंख बजाया था ? उत्तर है देवदत्त नामक । पौण्ड्र नामक शंख किसने बजाया था ? उत्तर है भीम ने । राजा युधिष्ठिर द्वारा कौन सा शंख बजाया गया ? उत्तर है अनन्तविजय नामक शंख । सुघोष नामक शंख किसने बजाया ? उत्तर है नकुल ने । सहदेव ने कौन सा शंख बजाया ? उत्तर है मणिपुष्पक नामक शंख ।

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