यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः ।
कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम् ॥ 38 ।।
कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम् ।
कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन ॥ 39 ।।
व्याख्या :- यद्यपि लोभ के वशीभूत होकर उनकी ( कौरवों की ) की बुद्धि भ्रष्ट ( खराब ) हो चुकी है । जिसके कारण उन्हें मित्रद्रोह व कुल में नाश से मिलने वाला पाप भी दिखाई नहीं दे रहा है ।
इसलिए हे जनार्दन ! क्यों न हम इस कुलनाश से मिलने वाले पाप को जानने के कारण इससे दूर रहने का प्रयास अथवा व्यवहार करें ?
इस प्रकार कुल के नष्ट हो जाने पर उस कुल का सनातन ( जो सदा से चला आ रहा है ) धर्म भी नष्ट हो जाएगा और उस कुलधर्म के नष्ट हो जाने से उस कुल को अधर्म या पाप द्वारा दबा लिया जाता है ।
विशेष :- इन श्लोकों में बताया गया है कि जब किसी भी कुल का नाश होता है तो उस कुल का सनातन धर्म भी साथ ही नष्ट हो जाता है । जिससे चारों ओर अधर्म का ही साम्राज्य स्थापित हो जाता है । इसलिए अर्जुन कुलनष्ट होने के दुष्प्रभावों को बताते हुए युद्ध करने से मना करता है ।
कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः ।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत ॥ 40 ।।
अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः ।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसंकरः ॥ 41 ।।
संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च ।
पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः ॥ 42 ।।
दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसंकरकारकैः ।
उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः ॥ 43 ।।
उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन ।
नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम ॥ 44 ।।
व्याख्या :- हे कृष्ण ! इस तरह अधर्म द्वारा धर्म को नष्ट करने से उस कुल की स्त्रियाँ दूषित ( चरित्र का पतन होना ) हो जाती हैं और हे वार्ष्णेय ! कुल की स्त्रियों के दूषित होने से वर्णसंकर नामक दोष की उत्पत्ति होती है ।
वह वर्णसंकर से उत्पन्न हुई सन्ताने कुलघातकों व कुल को नरक में ले जाती हैं । इस तरह पिण्डदान व तर्पण आदि क्रियाओं के लुप्त हो जाने से हमारे पूर्वजों का भी पतन हो जाता है ।
इस प्रकार वर्णसंकर दोष के कारण कुलघातियों द्वारा सदियों से चले आ रहे कुलधर्म व जातिधर्म दोनों को ही नष्ट कर दिया जाता है ।
हे जनार्दन ! इस प्रकार जिन मनुष्यों का कुलधर्म नष्ट हो जाता है । वह निश्चित रूप से नरक में निवास करते हैं । ऐसा हम सुनते आए हैं ।
विशेष :- ऊपर वर्णित श्लोकों में वर्णसंकर शब्द का प्रयोग किया गया है । जिसका अर्थ होता है जब किसी कुल अथवा परिवार के पुरुष युद्ध में मारे जाते हैं तो उसके बाद जो लोग युद्ध में विजय प्राप्त करते हैं उन पुरुषों द्वारा उन विधवा महिलाओं को अपने अधिकार में रखा जाता है । इससे जो सन्ताने उत्पन्न होगी वह किसी अन्य कुल की होंगी । जबकि वह महिलाएँ अन्य कुल की पत्नियाँ होती है । इस प्रकार जो सन्ताने पैदा होती है । वह संकर नस्ल कहलाती हैं । इसे हम एक उदाहरण द्वारा भी समझ सकते हैं । जिस प्रकार हम अपने खेत में दो अलग- अलग प्रकार के बीजों को आपस में मिलाकर उनकी बीजाई करते हैं तो उससे हमें एक अलग किस्म ( प्रजाति ) की फसल की प्राप्ति होती है । जिसे संकर नस्ल की फसल कहते हैं । इसे हम एक अन्य उदाहरण द्वारा और भी अच्छी प्रकार समझ सकते हैं । आजकल पशुओं की नस्ल को सुधारने के लिए भी इस प्रकार का प्रयोग किया जाता है । जिसमें एक सामान्य नस्ल के पशु को विशेष गुण वाली नस्ल के साथ क्रॉस करवाया जाता है । जिससे पैदा होने वाली नस्ल तीसरी प्रजाति की होती है । इसे भी संकर नस्ल कहा जाता है । अर्जुन भी इसी प्रकार की बात कहते हैं कि युद्ध में योद्धाओं के बड़े पैमाने पर मारे जाने पर उस कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाएंगी । जिससे आने वाली सन्तान वर्णसंकर वाली होंगी । जिससे कुल व जाति दोनों का ही नाश हो जाएगा ।
ॐ गुरुदेव!
बहुत बहुत आभार आपका।
Dr sahab nice explain about arjun emotionally condition.
ॐ गुरुजी प्रणाम
कई वर्षो से वर्णसंकर वाला भाग समझने की कोशिश कर रहा था।आपने सरल उदाहरणो द्वारा बढिया विश्लेषन किया है।संस्कार विहीन माता पिता की संताने वर्णसंकर होगी पर क्या आंरजातीय और आंतरधर्मीय विवाह भी इसी श्रेणी मे आयेंगे।अगर ऐसे विवाह जो पूरे विधि विधान से किये जाये तो उन्हे किस श्रेणी मे रखा जायेगा।
कृपया मार्गदर्शन करे।
Nice dr sahab.