अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् ।
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः ॥ 45 ।।
यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः ।
धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् ॥ 46 ।।
व्याख्या :- यह तो बड़े ही आश्चर्य की बात है कि राज्य के सुख व लालच को पाने में हम अपने ही सगे – संबंधियों को मारने जैसा महापाप करने के लिए तत्त्पर ( तैयार ) हो गए हैं ।
यदि यह शस्त्रधारी धृतराष्ट्र के पुत्र मुझ बिना शस्त्र वाले व बदले में किसी भी प्रकार का प्रतिकार ( जवाबी हमला ) न करने वाले को मार भी देंगे, तो भी मेरे लिए यह कल्याणकारी होगा ।
संजय उवाच
एवमुक्त्वार्जुनः सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत् ।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः ॥ 47 ।।
व्याख्या :- ऐसा कहने के बाद युद्धक्षेत्र में ही अर्जुन शोक से व्याकुल मन के साथ अपने धनुष – बाण को छोड़कर रथ में बैठ जाता है ।
विशेष :- इस प्रकार अर्जुन अपने स्वजनों के मोह में फंसकर पूरी तरह से अवसादग्रस्त हो जाता है और युद्ध करने से मना करते हुए कहता है कि यदि कौरवों द्वारा मुझे मार भी दिया जाए तो यह मेरे लिए कल्याणकारी होगा । इस पहले अध्याय में अर्जुन की अवसादग्रस्त अवस्था का वर्णन किया गया है । अगले अध्याय में श्रीकृष्ण अर्जुन के अवसाद की चिकित्सा प्रारम्भ करते हैं ।
Nice dr sahab.
ॐ गुरुदेव!
आपका हृदय से आभार।
बहुत-बहुत धन्यवाद गुरुजी
Thank u ,Sir ji
For this …!????????
Sabhaar: kaushal bhatia