विपरीतकरणी वर्णन यत्किञ्चित् स्त्रवते चन्द्रादमृतं दिव्यरूपिण: । तत् सर्वं ग्रसते सूर्यस्तेन पिण्डो जरायुत: ।। 77 ।। भावार्थ :- चन्द्र मण्डल से जिस दिव्य अमृत रस का स्त्राव ( टपकता ) होता है । उसका निरन्तर स्त्राव होने से उस अमृत रस को सूर्य मण्डल भस्म कर देता है । जिसके कारण मनुष्य में …
- Home
- |
- Category: hatha pradipika 3








