पद्मासन की विधि

 वामोरूपरि दक्षिणं च चरणं संस्थाप्य वामं तथा

दक्षोरूपरि, पश्चिमेन विधिना धृत्वा कराभ्यां दृढम् ।

अङ्गुष्ठौ, हृदये निधाय चिबुकं नासाग्रमालोकयेत्

एतद्व्याधिविनाशकारि यमिनां पद्मासनं प्रोच्यते ।। 46 ।।

 

भावार्थ :- बायीं जंघा पर दायें पैर को व दायीं जंघा पर बायें पैर को रखें । अब दोनों हाथों को कमर के पीछे से ले जाते हुए दायें हाथ से दायें व बायें हाथ से बायें पैर के अंगूठों को मजबूती से पकड़े । इसके बाद अपनी ठुड्डी को छाती पर लगाकर नासिका के अगले हिस्से को देखें । अतः साधकों के सभी रोगों को नष्ट कर करने वाले इस आसन को पद्मासन कहते हैं ।

 

 

पद्मासन दूसरे मत के अनुसार

 

 उत्तानौ चरणौ कृत्वा उरुसंस्थौ प्रयत्नत: ।

उरुमध्ये तथोत्तानौ पाणी कृत्वा ततो दृशौ ।। 47 ।।

नासाग्रे विन्यसेद्राजदन्तमूले तु जिह्वया ।

उत्तमभ्य चिबुकं वक्षस्युत्थाप्य पवनं शनै: ।। 48 ।।

 

भावार्थ :- अपने दोनों पैरों के तलवों को ऊपर की ओर रखते हुए प्रयत्न पूर्वक जंघाओं पर रखें । बायें पैर को दायीं जंघा व दायें पैर को बायीं जंघा पर । दोनों हाथों की हथेलियों को एक दूसरी के ऊपर करते हुए जंघाओं के बीच में स्थापित करें । नासिका के अग्रभाग पर दृष्टि स्थिर करते हुए ठुड्डी को छाती पर रखें और जीभ को सामने वाले दांतों के मूल भाग में लगा कर वहीं स्थिर कर दें व प्राण को धीरे – धीरे उर्ध्वगामी करना चाहिए । यह पद्मासन की दूसरी विधि है ।

 

 

पद्मासन के लाभ

 

इदं पद्मासनं प्रोक्तं सर्वव्याधिविनाशनम् ।

दुर्लभं येन केनापि धीमता लभ्यते भुवि ।। 49 ।।

 

भावार्थ :- इस प्रकार ऊपर वर्णित विधि को पद्मासन कहते हैं । यह पद्मासन सभी रोगों को नष्ट करने वाला होता है । यह अत्यन्त दुर्लभ आसन है । जिसे संसार में कुछ बुद्धिमान या योग्य व्यक्ति ही कर सकते हैं । सभी व्यक्ति इसे प्राप्त नहीं कर सकते । अर्थात यह सभी के लिए सहज नहीं है ।

 

 

कृत्वा संपुटितौ करौ दृढतरं बद्ध्वा तु पद्मासनम्

गाढं वक्षसि सन्निधाय चिबुकं ध्यायंश्च तच्चेतसि ।

वारंवारमपानमूध्र्वमनिलं प्रोत्सारयन् पूरितं

न्यञ्चन् प्राणमुपैति बोधमतुलं शक्तिप्रभान्नर: ।। 50 ।।

 

भावार्थ :- पद्मासन को मजबूती से लगाकर दोनों हाथों की हथेलियों को मिलाकर जंघाओं पर रखें । ठुड्डी को छाती पर टिकाते हुए चित्त में ध्यान लगाएं । अब मूलबन्ध के द्वारा अपान वायु को बार- बार ऊपर की ओर प्रवाहित करें व अन्दर वाले प्राण वायु को नीचे की ओर ले जाने से उन दोनों वायुओं का मिलन हो जाता है । जिससे कुण्डलिनी शक्ति का जागरण होता है और साधक को अतुल्य व असीमित ज्ञान की प्राप्ति होती है ।

Related Posts

October 29, 2018

युवा वृद्धोऽतिवृद्धो वा व्याधितो दुर्बलोऽपि वा । अभ्यासात्सिद्धिमाप्नोति सर्वयोगेष्वतन्द्रित: ।। 66 ।।   भावार्थ ...

Read More

October 29, 2018

मिताहार   सुस्निग्धमधुराहारश्चतुर्थांशविवर्जित: । भुज्यते शिवसंप्रीत्यै मिताहार: स उच्यते ।। 60 ।।   भावार्थ ...

Read More

October 29, 2018

      पद्मासन द्वारा मुक्ति   पद्मासने स्थितो योगी नाडीद्वारेण पूरितम् । मारुतं धारयेद्यस्तु स ...

Read More

October 26, 2018

पद्मासन की विधि  वामोरूपरि दक्षिणं च चरणं संस्थाप्य वामं तथा दक्षोरूपरि, पश्चिमेन विधिना धृत्वा ...

Read More
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked

{"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}